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________________ कारिका ३५ ] ईश्वर - परीक्षा ११२ तथैव प्रसिद्धेः । वस्तुनि द्रव्यरूपेणान्वयप्रत्ययविषये सत्येव कार्यस्य प्रादुर्भावात्तन्निबन्धन पर्याय विशेषाभावे च कार्यास्याप्रादुर्भावात्तदन्वयव्यतिरेकानुकरणात्कार्यकारणभावो व्यवतिष्ठते । न च द्रव्यरूपेणापि वस्तुनो नित्यत्वमवधार्यते तस्य पर्यायेभ्यो भङ्गरेभ्यः कथञ्चिदनर्थान्तरभावात् कथञ्चिदनित्यत्वसिद्धेः । महेश्वरस्य तु वैशेषिकैः सर्वथा नित्यत्वप्रतिज्ञानात्तदन्वयव्यतिरेकानुकरणासम्भवात्कार्याणामुत्पत्तेरयोगात् । पर्यायाणां च द्रव्यरूपेण नित्यत्वसिद्धेः कथञ्चिन्नित्यत्वात्सर्वथाऽप्य'नित्यत्वानवधारणात् । विशिष्टपर्यायसद्भावे कार्यस्योदयात्तदभावे चानुदयात्कार्यस्य तदन्वयव्यतिरेकानुकरणसिद्धेः । निरन्वयक्षणिक पर्यायाणामेव तदघटनात्, तत्र कार्यकारणभावाव्यवस्थितेः । पर्यायार्थिकनयप्राधान्यादविरोधाद्द्रव्यार्थिनयप्राधान्येन तदविरोधात् । प्रमाणार्पणया तु द्रव्य की गई है । ताल यह कि द्रव्य और पर्याय सापेक्ष रहते हुए ही कार्य और कारण बनते हैं, निरपेक्ष द्रव्य और पर्याय न तो कार्य प्रतीत होते हैं और न कारण प्रतीत होते हैं । अतएव द्रव्यरूपसे अन्वयज्ञानकी विषयभूत वस्तु के होनेपर ही कार्य उत्पन्न होता है और उस कार्यकी कारणभूत अव्यवहित पूर्ववर्ती पर्यायविशेषके न होनेपर कार्यकी उत्पत्ति नहीं होती है, इसप्रकार द्रव्य-पर्यायरूप वस्तु के अन्वयव्यतिरेकसे कार्यकारणभावकी व्यवस्था होती है । दूसरी बात यह है कि द्रव्यरूपसे भी हम वस्तुको नित्य नहीं मानते, क्योंकि वह क्षणिक पर्यायोंसे कथंचित् अभिन्न है और इसलिये कथंचित् अनित्यता उसमें भी स्वीकार करते हैं । लेकिन महेश्वरको तो वैशेषिकोंने सर्वथा नित्य ही माना है, इसलिये उसका अन्वयव्यतिरेक सर्वथा असम्भव होनेसे शरीरादिकार्यों की उत्पत्ति उससे नहीं बन सकती है । इसी प्रकार पर्यायोंको द्रव्यरूपसे नित्य सिद्ध होनेसे कथंचित् नित्य स्वीकार किया है, सर्वथा अनित्य उन्हें भी नहीं माना है । अमुक पर्यायविशेष के होनेपर कार्य उत्पन्न होता है और उस पर्यायके न होनेपर कार्य उत्पन्न नहीं होता, इसप्रकार पर्यायोंका कार्योंके साथ अन्वयव्यतिरेक सिद्ध हो जाता है | अन्वयरहित क्षणिक पर्यायों का ही कार्यके साथ अन्वयव्यतिरेक नहीं बनता है और इसलिये उनमें कार्यकारणभावकी व्यवस्था नहीं होती है । हाँ, यदि पर्यायार्थिक नयकी प्रधानता स्वीकार की जाय तो उनमें भी कार्य कारणभाव बन जाता है, जैसे द्रव्यार्थिक नयकी प्रधातासे द्रव्य कार्यकारणभावका विरोध नहीं है - वह उसमें उपपन्न 1. मु 'सर्वथा नित्यत्वा' | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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