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कारिका ३५ ] ईश्वर-परीक्षा
१०९. षिकमतमनुमन्यमानः समभिधत्ते; सोऽप्येवं प्रष्टव्यः; किमवस्थावतोऽवस्था पदार्थान्तरभूता किं वा नेति ? प्रथमकल्पनायां कथमवस्थापेक्षयाऽन्वव्यतिरेकानुविधानं तन्वादिकार्याणामीश्वरान्वयव्यतिरेकानुविधानं युज्यते ? धूमस्य पावकान्वयव्यतिरेकानुविधाने पर्वताद्यन्वयव्यतिरेकातुविधानप्रसंगात्, पदार्थान्तरत्वाविशेषात् । यथैव हि पर्वतादेः पावकस्य पदार्थान्तरत्वं तथेश्वरात्कारणान्तरसन्निधानस्यावस्थाविशेषस्यापि, सर्वथा विशेषाभावात् ।
१०५. यदि पूनरीश्वरस्यावस्थातो भेदेऽपि तेन सम्बन्धसदभावात्तदन्वयव्यतिरेकानुविधान कार्याणामीश्वरान्वयव्यतिरेकानुविधानमेवेति मन्यते तदा पर्वतादेः पावकेन सम्बन्धात्पावकान्वयव्यतिरेकानुविधानमपि
जैन-ऊपर आपने कार्योंके साथ ईश्वरके अन्वय और व्यतिरेकको सिद्ध करनेके लिये जो समाधान उपस्थित किया है उसके बारेमें हम आपसे पूछते हैं कि अवस्था अवस्थावानसे भिन्न है या अभिन्न ? प्रथम पक्षमें अवस्थाकी अपेक्षा सिद्ध हुआ अन्वय और व्यतिरेक शरीरादिक कार्योंके साथ ईश्वरके अन्वय और व्यतिरेकको कैसे सिद्ध कर सकता है ? अन्यथा धूमका जो अग्निके साथ अन्वय-व्यतिरेक है वह पर्वतके अन्वय और व्यतिरेकको भी सिद्ध कर दे, क्योंकि भिन्नता दोनों जगह समान है। जिस प्रकार पर्वतादिकसे अग्नि स्पष्टतः भिन्न है उसीप्रकार अन्य. कारणोंकी सन्निकटतारूप अवस्थाविशेष भी ईश्वरसे भिन्न है, दोनोंमें कुछ भी विशेषता नहीं है। तात्पर्य यह कि ईश्वरकी जिस (अन्य कारणों की सन्निकटतारूप ) अवस्थाविशेषकी अपेक्षासे अन्वय और व्यतिरेक बतलाये गये हैं वह अवस्था ईश्वरसे सदा भिन्न है और इसलिए उसकी अपेक्षासे सिद्ध हुए अन्वय-व्यतिरेक उसीके कहलाये जायेंगे-उससे भिन्न ईश्वरके कदापि नहीं। नहीं तो धूमका अग्निके साथ जो अन्वयव्यतिरेक है वह पर्वतके साथ भी माना जाना चाहिये, क्योंकि भिन्नता बराबर है।
१०५. यदि कहा जाय कि यद्यपि ईश्वरका अवस्थासे भेद है तथापि उसके साथ सम्बन्ध है। अतः अवस्थाकी अपेक्षा सिद्ध हआ अन्वयव्यतिरेक कार्योंके साथ ईश्वरका अन्वय-व्यतिरेक सिद्ध है तो पर्वतादिकका अग्निके साथ सम्बन्ध है और इसलिये अग्निका अन्वय-व्यतिरेक भी धूमका.
1. व 'तन्वादिकार्याणाभीश्वरान्वयव्यतिरेकानुविधान' पाठो नास्ति ।
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