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________________ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [ कारिका १८ 2 प्रभुतन्त्रा एव नानाप्रभुत्वात्, ये ये नानाप्रभवस्ते ते अत्रैकमहाप्रभतन्त्रा दृष्टाः, यथा सामन्त महासामन्त-मण्डलिकादय एकचक्रवत्तितन्त्राः, प्रभवश्चैते नानाचक्रवर्तीन्द्रादयः, तस्मादेकमहाप्रभुतन्त्रा एव । योऽसौ महाप्रभुः स महेश्वर इत्येकेश्वरसिद्धिः । स च स्वदेहनिर्माण करो ऽन्यदेहिनां निग्रहानुग्रहकरत्वात्, यो योऽन्यदेहिनां निग्रहानुग्रहकर : * स स स्वदेहनिर्माणकरो दृष्टः, यथा राजा तथा चायमन्यदेहिनां निग्रहानुग्रहकरः, तस्मात्स्वदेहनिर्माणकर इति सिद्धम् । तथा सति स्वं देहं निर्मायान्यदेहिनां निग्रहानुग्रहौ करोतीश्वर इति केषाञ्चिद्वचः; तच्च न परीक्षाक्षमम्; महेश्वरस्याशरीरस्य स्वदेहनिर्माणानुपपत्तेः । तथा हि ८८ हम सिद्ध करते हैं कि विचारस्थ नाना प्रभु एक महाप्रभुके अधीन हैं क्योंकि नाना प्रभु हैं, जो जो नाना प्रभु होते हैं वे वे इस लोक में एक महाप्रभुके अधीन देखे जाते हैं । जैसे सामन्त, महासामन्त और माण्डलिक आदि राजागण एक चक्रवर्ति - सम्राट् के अधीन हैं । औ ये सभी नाना चक्रवर्ती, इन्द्र आदि प्रभु हैं, इस कारण एक महाप्रभुके अवश्य अधीन हैं । तथा जो महाप्रभु है वह महेश्वर है । इस प्रकार एक हो ईश्वर सिद्ध होता है - अनेक नहीं । और वह अपने शरीरका निर्माणकर्ता है क्योंकि वह दूसरे देहधारियोंके निग्रह और अनुग्रहको करता है, जो जो दूसरे देहधारियोंके निग्रह और अनुग्रहको करता है वह वह अपने शरीरका निर्माणकर्ता देखा गया है, जैसे राजा । और दूसरे प्राणियोंके निग्रह और अनुग्रहको करनेवाला यह महेश्वर है, इसलिये वह अपने शरीरका निर्माणकर्ता है | अतः ईश्वर अपने शरीरको रचकर दूसरे प्राणियों के निग्रह और अनुग्रह - दण्ड और उपकारको करता है । यह बात भले प्रकार सिद्ध हो जाती है ? $ समाधान - ईश्वरावतारवादियों का यह कथन परीक्षाद्वारा युक्तिपूर्ण सिद्ध नहीं होता । कारण, महेश्वर जब स्वयं शरीररहित ( अशरीरी ) है तब वह अपने शरीरका निर्माण कर्त्ता नहीं बन सकता है । इसी बात को 1. मु ' सामन्तमाण्डलिका' । तत्र 'महासामन्त इति पाठो त्रुटितः । 2. द 'महेश्वरः सिद्धः ' । 3. द 'निर्माणं करोति' । 4. द 'नुग्रहं करोति' । 5. द प्रतौ 'अशरीरस्य' पाठो नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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