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________________ ७८ आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटीका [ कारिका १२ ततो न सकूदनेककायादिकार्योत्पत्तिरिति न प्राण्यदृष्टनिमित्तेश्वरेच्छाभिव्यक्तिः सिद्ध्येत् । एतेन पदार्थान्तरनिमित्ताऽपीश्वरेच्छाऽभिव्यक्ति रपास्ता । $ ७६. 'स्यान्मतम्- -महेश्वरेच्छाऽनभिव्यक्तैव कार्यजन्मनि निमित्तम्, कर्मनिबन्धनाया एवेच्छायाः क्वचिदभिव्यक्ताया निमित्तत्वदर्शनात्, तदिच्छायाः कर्मनिमित्तत्वाभावादिति मतम् तदप्यसम्बद्धम्; कस्यारिचदिच्छायाः सर्वथाऽनभिव्यक्तायाः क्वचित्कार्ये क्रियाहेतुत्वासिद्धेरज्ञजन्तुवत् । कर्माभावे चेच्छायाः सर्वथाऽनुपपत्तेः । तथा हि-विवादाध्यासितः पुरुषविशेषो नेच्छावान् निःकर्मत्वात्, यो यो निःकर्मा स स नेच्छावान्, यथा मुक्तात्मा, निःकर्मा चायम्, तस्मान्नेच्छावानिति नेश्वरस्येच्छासम्भवः । तदभावे च न प्रयत्नः स्यात्, तस्येच्छापूर्वकत्वात् -- उससे अनेक प्राणियों के उपभोग में आनेयोग्य शरीरादिकार्यों की उत्पत्ति नहीं हो सकेगी, इस प्रकार ईश्वरेच्छाकी प्राणियों के अदृष्टसे अभिव्यक्ति नहीं बनती। इस उपरोक्त विवेचनसे पदार्थान्तरके निमित्तसे ईश्वरेच्छाको अभिव्यक्ति मानना भी निरस्त हो जाता है, क्योंकि पदार्थान्तर में भी उपर्युक्त प्रकार की आपत्तियाँ आती हैं । $ ७६ वैशेषिक — बात यह है कि महेश्वरेच्छा अनभिव्यक्त होकर ही कार्योत्पत्ति में निमित्त होती है। कारण, जो इच्छा कर्मजन्य होती है वही किसी कार्यकी उत्पत्ति में अभिव्यक्त होकर निमित्तकारण देखी जाती है और महेश्वरकी इच्छा कर्मजन्य नहीं है । अतः उपर्युक्त दोष नहीं है ? जैन -- उक्त कथन भी संगत नहीं है; क्योंकि कोई भी इच्छा क्यों न हो, यदि वह सर्वथा अनभिव्यक्त है तो अज्ञप्राणीकी तरह वह किसी भी कार्यमें क्रियोत्पादक नहीं हो सकती । दूसरी बात यह है कि महेश्वर के कमंके अभावमें इच्छा सर्वथा अनुपपन्न है - किसी भी प्रकार सिद्ध नहीं हो सकती है। वह इस प्रकारसे है-विचारकोटिमें स्थित पुरुषविशेष इच्छावान् नहीं है क्योंकि कर्मरहित है, जो जो कर्मरहित होता है वह वह इच्छावान् नहीं होता, जैसे मुक्त जीव और कर्मरहित विचारकोटिमें स्थित पुरुष-विशेष है, इस कारण इच्छारहित है, इस प्रकार महेश्वरके इच्छा सर्वथा असम्भव है । और जब इच्छा असम्भव है तो प्रयत्न भी १. वैशेषिक ईश्वरेच्छायाः द्वितीयमनभिव्यक्तपक्षमाश्रित्य शंकते स्यादिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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