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________________ ७७. कारिका १२] ईश्वर-परीक्षा गत्वा स्वभाववतः स्वभावानां स्वभावान्तरनिरपेक्षत्वे प्रथमेऽपि स्वभावाः स्वभावान्तरनिरपेक्षाः प्रसज्येरन् । तथा च सर्वे सर्वस्य स्वभावा इति स्वभावसङ्कर प्रसंगः । २तं परिजिहीर्षता न स्वभावतद्वतो दैकान्तोऽभ्युपगन्तव्यः । तदभेदैकान्ते च स्वभावानां तद्वति सर्वात्मनाऽनुप्रवेशात्तदेवैकं तत्त्वं परमब्रह्मेति निगद्यमानं न प्रमाणविरुद्धं स्यात् । तदप्यनिच्छता स्वभावतद्वतोः कथञ्चित्तादात्म्यमेषितव्यम् । तथा चेश्वरेच्छाया नानास्वभावाः कथञ्चित्तादात्म्यमनुभवन्तोऽनेकान्तात्मिकामीश्वरेच्छां साधयेयुः। तामप्यनिच्छतैकस्वभावेश्वरेच्छा प्रतिपत्तव्या। सा चैन प्राण्यदृष्टेनाभिव्यक्ता तदेकप्राण्युपभोगयोग्यमेव कायादिकार्यं कुर्यात् । वस्थादोष आयेगा। बहुत दूर जाकर भी यदि उस स्वभाववालेके स्वभावोंको अन्यस्वभावोंकी अपेक्षाके बिना मानें तो पहले स्वभावोंको भी अन्यस्वभावोकी अपेक्षासे रहित मानना चाहिये और ऐसी दशामें सब सभीके स्वभाव बन जायेंगे, इस प्रकार स्वभावोंका सांकर्य हो जायगा। तात्पर्य यह कि जिस किसोके स्वभाव जिस किसोके हो जायेंगे, अतएव इस दोषको यदि दूर करना चाहते हैं तो स्वभाव और स्वभाववान्में सर्वथा भेद स्वीकार नहीं करना चाहिये। और यदि उनमें सर्वथा अभेद मानें तो स्वभाव स्वभाववान्में प्रविष्ट हो जानेसे वही एक 'ब्रह्म' नामका तत्त्व सिद्ध होगा, ऐसा कहनेमें प्रमाणसे कुछ विरोध भी नहीं आता । और अगर सर्वथा अभेद भी नहीं मानना चाहते हैं तो स्वभाव और स्वभाववान्में कथंचित् तादात्म्य ( भेदाभेद ) मानिये। और उस दशामें ईश्वरेच्छाके स्वीकृत नाना स्वभावोंका उसके साथ जब तादात्म्य होगा तो वे स्वभाव ईश्वरेच्छाको अनेकान्तात्मक सिद्ध करेंगे, क्योंकि नानास्वभाव ईश्वरेच्छासे कथंचित् अभिन्न हैं। और इसलिये ईश्वरेच्छा भी नानात्मक सिद्ध होगी। यदि अनेकान्तात्मक ईश्वरेच्छाको भी नहीं मानना चाहते हैं तो एक स्वभाववाली ईश्वरेच्छा स्वीकार करिये । सो वह ईश्वरेच्छा यदि एक प्राणीके अदृष्टसे अभिव्यक्त होती है तो वह उसी एक प्राणीके उपभोगमें आने योग्य ही शरीरादिकार्यको उत्पन्न करेगी,. १. परस्परप्राप्तिः संकरः । २. संकरप्रसंगम् । ३. भक्ता वैशेषिकेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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