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________________ ६७ कारिका ९] ईश्वर-परीक्षा कारणम्, तद्भावभावित्वाभावात् । तत्त्वज्ञानात्पूर्व मोक्षमार्गस्य प्रणयने तदुपदेशस्य प्रामाण्यायोगात, अतत्त्वज्ञवचनात्', रथ्यापुरुषवचनवत् । नापि प्रादुर्भतसाक्षात्तत्त्वज्ञानस्यापि परमवैराग्योत्पत्तेः पूर्वमवस्थानसम्भवान्मोक्षमार्गप्रणीतिर्युक्ता, साक्षात्सकलतत्त्वज्ञानस्यैव परमवैराग्यस्वभावत्वात् । एतेन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रप्रकर्षपर्यन्तप्राप्तौ निःश्रेयसमिति वदतोऽपि न मोक्षमार्गप्रणयनसिद्धिरिति प्रतिपादितं बोद्धव्यम, केवलज्ञानोत्पत्तौ क्षायिकसम्यग्दर्शनस्य क्षायिकचारित्रस्य च परमप्रकर्षपरिप्राप्तस्य सद्भावात् सम्यग्दर्शनादित्रयप्रकर्षपर्यन्तप्राप्तौ परममुक्तिप्रसङ्गादवस्थानायोगान्मोक्षमार्गोपदेशासम्भवात् । तदाऽप्यवस्थाने सर्वज्ञस्य न तावन्मात्रकारणत्वं मोक्षस्य स्यात् तद्धावभावित्वाभावादेव ज्ञानमात्रवदिति' तन्मतमप्यनूद्य विचारयन्नाह प्रणयन माना जाय तो उसका वह उपदेश प्रमाण नहीं हो सकता । कारण, पागलके वचनकी तरह वह अतत्त्वज्ञका वचन है। यदि कहा जाय कि 'साक्षात् तत्त्वज्ञान उत्पन्न होनेके बाद और उत्कृष्ट वैराग्य ( चारित्र) को उत्पत्तिके पहले अवस्थान सम्भव है और इसलिये उस समय मोक्षमार्गका प्रणयन युक्तिसंगत है, तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण तत्त्वोंका जो साक्षात् ज्ञान है वह उत्कृष्ट वैराग्य स्वरूप है। इसी कथनसे 'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंके अत्यन्त प्रकर्षताको प्राप्त हो जानेपर मोक्ष होता है' ऐसा प्रतिपादन करनेवालोंके यहाँ भी मोक्षमार्गका प्रणयन नहीं बन सकता है, यह कथन समझ लेना चाहिये। क्योंकि केवलज्ञानके उत्पन्न हो जानेपर क्षायिकसम्यकदर्शन और क्षायिकसम्यकचारित्र भी अत्यन्त उन्नतावस्थाको प्राप्त हो जाते हैं और इसलिये इन तीनोंके परम-प्रकर्षको प्राप्त हो जानेपर परम-मुक्तिका प्रसंग आने और सर्वज्ञका अवस्थान न हो सकनेसे मोक्षमार्गोपदेश सम्भव नहीं है। फिर भी उसका अवस्थान मानें तो वे ही मोक्षका कारण सिद्ध नहीं होते, क्योंकि उन ( सम्यग्दर्शनादि तीनों) के होनेपर भी मोक्ष नहीं होता, जैसे ज्ञानमात्र मोक्षका कारण नहीं है ? 1.द 'अतत्त्वज्ञानिवचनत्वात्' । 2. मु 'बौद्ध"। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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