________________
आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका १०, ११ [अनादिसर्वज्ञस्य मोक्षमार्गप्रणयनमसम्भवीति प्रतिपादनम् ] प्रणीतिर्मोक्षमार्गस्य न विनाऽनादिसिद्धतः । सर्वज्ञादिति तत्सिद्धिर्न परीक्षासहा, स हि ॥१०॥ प्रणेता मोक्षमार्गस्य नाशरीरोऽन्यमुक्तवत् । सशरीरस्तु नाकर्मा सम्भवत्य जन्तुवत् ॥११॥
७०. यस्मादनादिसिद्धात्सर्वज्ञान्मोक्षमार्गप्रणीतिः सादिसर्वज्ञान्मोक्षमार्गप्रणयनासम्भवभयादभ्यनुज्ञायते। सोऽशरीरो वा स्यात्सशरीरो वा, गत्यन्तराभावात् । न तावदशरीरो मोक्षमार्गस्य प्रणेता सम्भवति, तदन्यमुक्तवद्वाकप्रवृत्तेरयोगात् । नापि सशरीरः, सकर्मकत्वप्रसङ्गादज्ञ' प्राणिवत् । ततो नानादिसिद्धस्य सर्वज्ञस्य मोक्षमार्गप्रणीतिः परीक्षां सहते
इस शङ्काको दुहराते हुये उसका समाधान आचार्य अगली कारिकाद्वारा करते हैं:
मोक्षमार्गका उपदेश अनादिसिद्ध सर्वज्ञके बिना नहीं बन सकता है, अतः अनादिसिद्ध सर्वज्ञकी सिद्धि सुतरां हो जाती है, परन्तु यह कथन ठीक नहीं है। क्योंकि परीक्षा करनेपर अनादिसिद्ध सर्वज्ञसिद्ध नहीं होता। हम पूछते हैं कि वह सशरीरो-शरीरवान् है अथवा अशरीरी-शरीररहित ? यदि शरीररहित है तो वह अन्य मुक्त जीवोंकी तरह मोक्षमार्गका प्रणेता नहीं हो सकता । सशरोरी-देहधारी भी अज्ञ प्राणियोंकी तरह कर्मरहित होनेसे मोक्षमार्गका प्रणेता सम्भव नहीं है। ____ इसी बातको आचार्य महोदय अपनी टीकाद्वारा स्पष्ट करते हैं
७०. चूँकि अनादिसिद्ध सर्वज्ञसे मोक्षमार्गका प्रगयन स्वीकार किया जाता है, क्योंकि सादिसर्वज्ञसे मोक्षमार्गका प्रणयन सम्भव नहीं है । इसपर हमारा प्रश्न है कि वह मोक्षमार्गका प्रणयन करनेवाला अनादिसिद्ध सर्वज्ञ देहरहित है अथवा देहधारी ? अन्य विकल्प सम्भव नहीं है। देहरहित तो मोक्षमार्गका प्रणेता सम्भव नहीं है, जैसे दूसरे मुक्त जीव, क्योंकि देहके बिना वचनका व्यापार नहीं हो सकता है। और न देहधारी भी मोक्षमार्गका प्रणेता हो सकता है क्योंकि उसे देहधारी माननेपर कर्मवान् होनेका प्रसङ्ग आवेगा, जैसे दूसरे संसारी प्राणी । अतः अनादिसिद्ध सर्वज्ञके मोक्षमार्गका प्रणयन परीक्षाको नहीं सहता है जिससे कि उसे व्यवस्था
1. द 'त्यन्य' । 2. व 'त्यन्य'।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org