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________________ ६६ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका कुलालादिसिसृक्षायाः । ततो नान्वयव्यतिरेकयोर्व्यापकयोरनुपलम्भोऽस्ति, यतो व्यापकानुपलम्भः पक्षस्य बाधकः स्यादिति चेत ; न; तस्या महेश्वरसिसृक्षायाः कायादिकार्योत्पत्तौ नित्यानित्यत्वविकल्पद्वयेऽपि निमित्तकारणत्वनिराकरणात् तदन्वयव्यतिरेकानुविधानस्यासिद्धेर्व्यापकानुपलम्भ: प्रसिद्ध एव पक्षस्य बाधक इत्यनुमानबाधितपक्षत्वात्कालात्ययापदिष्टहेतुत्वाच्च न बुद्धिमन्निमित्तत्वसाधनं साधीयः सिद्धम्, यतोऽनुपायसिद्धः सर्वज्ञोऽनादिः कर्मभिरस्पृष्टः सर्वदा सिध्येदिति सूक्तं 'तस्यानुपायसिद्धस्य सर्वथाऽनुपपत्तितः' इति । [ कारिका ९ $ ६९. योऽप्याह - 'मोक्ष मार्गप्रणीतिरनादिसिद्धसर्वज्ञमन्तरेण नोपपद्यते, सोपायसिद्धस्य सर्वज्ञस्थानवस्थानान्मोक्षमार्गप्रणीतेर सम्भवात् । अवस्थाने वा तस्य समुत्पन्नतत्त्वज्ञानस्यापि साक्षान्न तत्त्वज्ञानं मोक्षस्य का अन्वय और व्यतिरेक घटादिक कार्यके साथ देखा जाता है । अतः प्रकृतमें अन्वय और व्यतिरेकरूप व्यापकका अनुपलम्भ – अभाव नहीं है और इसलिये पक्ष व्यापकानुपलम्भसे बाधित नहीं है ? समाधान- नहीं, क्योंकि महेश्वरकी इच्छाकी शरीरादिक कार्योंकी उत्पत्ति में निमित्तकारणताका निराकरण नित्य और अनित्य इन दोनों विकल्पोंद्वारा पहले ही किया जा चुका है, अतः महेश्वरकी इच्छाका अन्वय और व्यतिरेक बनना सर्वथा असिद्ध है और इसलिये व्यापकानुपलम्भ पक्षका बाधक सिद्ध ही है । इस तरह प्रकृत पक्ष अनुमानसे बाधित होने और हेतु कालात्ययापदिष्ट होनेसे 'शरीरादिक बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य हैं' यह सिद्ध नहीं होता जिससे कि सर्वज्ञ - ईश्वर अनुपायसिद्ध, अनादि और कर्मोंसे सदा अस्पृष्ट सिद्ध हो सके । इसलिये ठीक कहा गया है कि 'अनुपाय सिद्ध ईश्वर किसी प्रकारसे भी सिद्ध नहीं होता ।' Jain Education International $ ६९. शङ्का - ( अगली कारिकाकी उत्थानिका ) ' मोक्षमार्गका उपदेश अनादि सर्वज्ञके बिना नहीं बन सकता है क्योंकि उपायपूर्वक ( तपचर्यादिद्वारा ) जो सर्वज्ञ सिद्ध होगा वह अवस्थित् नहीं रह सकेगा - तुरन्त निर्वाणको प्राप्त हो जायगा और इसलिये उससे मोक्षमार्गका प्रणयन सम्भव नहीं है । और यदि उसका अवस्थान माना जायगा तो उसे तत्त्वज्ञान उत्पन्न हो जानेपर भी तुरन्त मोक्ष न होनेसे साक्षात् तत्त्वज्ञान मोक्षका कारण सिद्ध नहीं हो सकेगा, क्योंकि उसके होनेपर भी मोक्ष नहीं हुआ । और अगर तत्त्वज्ञानको प्राप्त करनेसे पहले मोक्षमार्गका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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