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कारिका ९]
ईश्वर - परीक्षा
$ ६७. ननु तेषां समस्तपदार्थज्ञानस्यान्त्यस्य योगाभ्यासविशेषजन्मनः सद्भावे सकलमिथ्याज्ञान- दोष-प्रवृत्ति- जन्म- दुःखपरिक्षयात्परमनिःश्रेयससिद्धेः समस्तकारकप्रयोक्तृत्वासिद्धिर्न पुनरीश्वरस्य तस्य सदा मुक्तत्वात् सदैवेश्वत्वाच्च संसारिमुक्तविलक्षणत्वात् । न हि संसारिवदज्ञो महेश्वरः प्रतिज्ञायते । नापि मुक्तवत् समस्तज्ञानैश्वर्यरहित इति तस्यैव समस्तकारकप्रयोक्तृत्वलक्षणं निमित्तकारणत्वं कायादिकार्योत्पत्तौ सम्भाव्यत इति केचित; तेsपि न विचारचतुरचेतसः; कायादिकार्यस्य महेश्वराभावे क्वचिदभावासिद्धेर्व्यतिरेकासम्भवस्य प्रतिपादितत्वात्, 'निश्चितान्वयस्याप्यभावात् ।
$ ६८. ननु च यत्र यदा यथा महेश्वरसिसृक्षा सम्भवति तत्र तदा तथा कायादिकार्यमुत्पद्यते । अन्यत्राऽन्यदाऽन्यथा तदभावान्नोत्पद्यत इत्यन्वयव्यतिरेको महेश्वरसिसृक्षायाः कायादिकार्यमनुविधत्ते कुम्भादिकार्यवत्
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$ ६७. शङ्का - योगियोंको जो योगका विशिष्ट अभ्यास करनेसे समस्त पदार्थोंका पूर्ण ज्ञान होता है उसके होनेपर उनको अशेष मिथ्याज्ञान, दोष, पुण्य-पापात्मिका प्रवृत्ति, जन्म और दुःखके सर्वथा क्षय होनेसे परमोक्ष होता है | अतः वे समस्त कारकों के प्रयोक्ता नहीं हो सकते हैं, किन्तु ईश्वर प्रयोक्ता हो सकता है क्योंकि वह सदैव मुक्त है और हमेशा ही ईश्वर - ऐश्वर्यसम्पन्न है एवं संसारी तथा मुक्त जीवोंसे विलक्षण है । वस्तुतः महेश्वर न संसारियोंकी तरह अज्ञ है और न मुक्त जीवों जैसा समस्त ज्ञान और समस्त ऐश्वर्यसे रहित है । अतः महेश्वर ही शरीरादिक कार्यों की उत्पत्ति में समस्त कारकोंका प्रयोक्तारूप निमित्तकारण सम्भव है ?
समाधान - यह कथन भी विचारपूर्ण नहीं है, क्योंकि महेश्वरके अभावमें शरीरादिक कार्योंका अभाव सिद्ध न होनेसे व्यतिरेकका अभाव ज्यों-का-त्यों बना हुआ है और निश्चित अन्वयका भी अभाव पूर्ववत् है ।
$ ६८. शङ्का - जहाँ जब और जैसी महेश्वरकी सृष्टि इच्छा होती है वहाँ तब वैसे शरीरादि कार्यं उत्पन्न होते हैं और अन्य जगह, अन्य काल एवं अन्य प्रकारकी ईश्वर की सृष्टि इच्छा न होने से शरीरादि कार्य उत्पन्न नहीं होते, इस प्रकार महेश्वरकी सृष्टि इच्छाका अन्वय और व्यतिरेक शरीरादि कार्यों के साथ बन जाता है, जैसे कुम्हार आदिककी सृष्टि - इच्छा
1. द ' निश्चितस्यान्वयस्या' ।
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