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________________ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटोका [कारिका ९, निमित्तकारणानि तेषु सत्सु भावादन्वयसिद्धावपि तच्छून्ये च देशे क्वचिदपि तन्वादिकार्यानुत्पत्तेय॑तिरेकसिद्धावपि च । तथेश्वरे सत्येव तन्वादिकार्योत्पत्तेस्तच्छून्ये प्रदेशे क्वचित्तदनुत्पत्तेः तच्छून्यस्य प्रदेशस्यैवाभावात् अन्वयव्यतिरेकसिद्धावपीश्वरो निमित्तकारणं माभूत् । सर्वथा विशेषाभावात् । ६६. स्यान्मतम-महेश्वरस्य बुद्धिमत्त्वात समस्तकारकपरिज्ञानयोगात्तत्प्रयोक्तत्वलक्षणं निमित्तकारणत्वं तन्वादिकार्योत्पत्ती व्यवतिष्ठते न पुनरात्मान्तराणामज्ञत्वात्तल्लक्षणनिमित्तकारणत्वाघटनादिति; तदपि न समीचीनम्; सर्वज्ञस्य समस्तकारकप्रयोक्तृत्वासिद्धेर्योग्यन्तरवत् । न हि योग्यन्तराणां सर्वज्ञत्वेऽपि समस्तकारकप्रयोक्तत्वमिष्यते। कारण नहीं हैं, यद्यपि उनके होनेपर कार्य होता है, इस प्रकार अन्वय भी मिल जाता है और उनसे शून्य किसी जगहमें शरीरादिकार्य उत्पन्न नहीं होता, इस प्रकार व्यतिरेक भी बन जाता है। उसी प्रकार ईश्वरके होनेपर हो शरीरादिकार्योंकी उत्पत्ति होती है और ईश्वरसे रहित किसी जगह शरीरादिकार्यकी उत्पत्ति नहीं होतो, यद्यपि ईश्वरसे रहित कोई प्रदेश ( जगह ) ही नहीं है, इस प्रकार अन्वय और व्यतिरेक सिद्ध हो जानेपर भी ईश्वर निमित्तकारण न हो, क्योंकि दूसरे आत्माओंसे ईश्वरम कोई विशेषता नहीं है। ६६. शङ्का-हमारा अभिप्राय यह है कि महेश्वर बुद्धिमान् है और इसलिए वह समस्त कारकोंका परिज्ञाता है । अतः शरीरादिक कार्योंको उत्पत्तिमे वह उन कारणोंका प्रयोक्ता ( संयोजक ) रूप निमित्तकारण बन जाता है। परन्तु आत्मान्तर-दूसरे आत्मा-अज्ञ हैं और इसलिये वे उक्त कार्योंकी उत्पत्तिमें प्रयोक्तारूप निमित्तकारण नहीं बन सकते हैं ? समाधान-यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि सर्वज्ञके समस्त कारकोंका प्रयोक्तापन दूसरे योगियोंकी तरह असिद्ध है अर्थात् ईश्वरकी सर्वज्ञता समस्त कारकोंके प्रयोक्तापनमें प्रयोजक नहीं है क्योंकि ईश्वर-भिन्न योगियोंके सर्वज्ञ होनेपर भी उन्हें समस्त कारकोंका प्रयोक्ता नहीं माना जाता। 1. द 'च्छून्यप्रदेशे'। 2. म प स 'क्वचिदपि । 3. स प 'लक्षणनिमित्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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