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________________ कारिका ९] ईश्वर-परीक्षा विभुद्रव्याणां सर्वगतत्वमप्युपचरितं स्यात् । परमाणोश्च परमाण्वन्तरसयोगस्य पारमार्थिकत्वासिद्ध चणुकादिकार्यद्रव्यमपारमार्थिकमासज्येत, कारणस्योपचरितत्वे कार्यस्यानुपचरितत्वायोगादिति केचित्प्रचक्षते । $ ६५. तऽपि स्याद्वादिमतमन्धसर्पविलप्रवेशन्यायेनानुसरन्तोऽपि नेश्वरस्य निमित्तकारणत्वं तन्वादिकार्योत्पत्तौ समर्थयितुमीशन्ते, तथाऽपि तदन्वयव्यतिरेकानुविधानस्य साधयितुमशक्यत्वात्, आत्मान्तरान्वयव्यतिरेकानुविधानवत् । यथैव ह्यात्मान्तराणि तन्वादिकार्योत्पत्तौ न साथ होनेवाले संयोग उपवरित-अपारमार्थिक हो जायेंगे। इसी प्रकार विभु ( व्यापक ) द्रव्योंका व्यापकपना भी उपचरित हो जायगा और परमाणुका परमाणु के साथ संयोग भी पारमार्थिक नहीं कहा जा सकेगावास्तविक सिद्ध नहीं हो सकेगा और इस तरह व्यणुक आदि कार्यद्रव्य काल्पनिक हो जायेंगे, क्योंकि कारणके काल्पनिक होनेपर कार्य अकाल्पनिक नहीं हो सकता है-कारणके अनुसार ही कार्य होता है। तात्पर्य यह कि जिस युक्तिसे कालादिकोंको परिणामी और सप्रदेशी माना जाता है और उनके अन्वय तथा व्यतिरेकको प्रमाणित करके उन्हें समस्त कार्योंकी उत्पत्तिमें निमित्तकारण स्वीकार किया जाता है उसी यक्तिसे ईश्वरको भी परिणामी और सप्रदेशी माना जा सकता है, जैसा कि ऊपर बताया गया है और इस तरह पर उसके अन्वय तथा व्यतिरेकको प्रमाणित करके उसे शरीरादिकार्योंकी उत्पत्तिमें निमित्तकारण मानना अनुचित नहीं है, इस प्रकार कोई नैयायिक और वैशेषिक मतके अनुयायी कथन करते हैं ? ६५. समाधान-वे भी स्याद्वादियों (जैनों)के मतका 'अन्धसर्पविलप्रवेश' न्यायसे अनुसरण करते हुए भी ईश्वरको शरीरादिकार्योंकी उत्पत्ति में निमित्तकारण समर्थन करनेमें समर्थ नहीं हैं क्योंकि उक्त प्रकार कथन करनेपर भी ईश्वरका अन्वय और व्यतिरेक सिद्ध नहीं किया जा सकता है, जैसे दूसरे आत्माओंका अन्वय और व्यतिरेक नहीं बनता है। वस्तुतः जिस प्रकार दूसरे आत्मा शरीरादिक कार्योंकी उत्पत्तिमें निमित्त 1. द ‘परमार्थत्वासिद्धे', मु 'पारिमार्थिकासिद्धे' । 2. मु प स 'मीशते' । १. अन्धा सर्प बिलके चारों तरफ चक्कर काटता रहता है परन्तु उसमें घुसता नहीं है, इसे 'अन्धसर्प-विलप्रवेश-न्याय' कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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