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________________ कारिका ९] ५१ 1 सोऽपि न युक्तवादी; तथा सति सर्वानुमानोच्छेदप्रसंगात् । तथा हिसाग्निरयं पर्वतो धूमवत्त्वान्महानसवदित्यत्रापि पर्वतादौ महानसपरिदृष्टस्यैव खादिरपालाशाद्यग्निनाऽग्निमत्वस्य सिद्धेविरुद्धसाधनाद्विरुद्ध साधनं स्यात् । तार्णाद्यग्निनाऽग्निमत्वस्य पर्वतादौ साध्यस्य महानसादावभावात् साध्यविकलमुदाहरणमप्यनुषज्येत । समाधान ५६. यदि पुनरग्निमत्वसामान्यं देशादिविशिष्टं पर्वतादौ साध्यते इति नेष्टविरुद्धं साधनम् । नापि साध्यविकल मुदाहरणम्, महानसादावपि देशादिविशिष्टस्याग्निमत्वस्य सद्भावादिति मतम् तदा तन्वादिषु बुद्धिमन्निमित्तत्व सामान्यं तन्वादिस्वकार्यविनिर्माणशक्तिविशिष्टं साध्यत इति नेष्टविरुद्धसाधनो हेतुः । नापि साध्यविकलो दृष्टान्तः स्वकार्यंवि- उक्त कथन युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि उक्त प्रकारसे तो सभी अनुमानोंका उच्छेद ( नाश ) हो जायगा -- कोई भी अनुमान नहीं बन सकेगा । इसका खुलासा इस प्रकार है: - 'यह पर्वत अग्निवाला है, क्योंकि धूमवाला है, जैसे महानस - ( रसोईका घर ) ।' इस अनुमान - द्वारा यदि पर्वतादिकमें महानसगत खैर, पलाश आदिकी अग्नि जैसी ही afro सिद्ध की जाती है तो इष्ट - ( तृणादिककी अग्नि ) से विरुद्ध( खैर, पलाश आदिकी अग्नि ) को सिद्ध करनेसे 'धूम' हेतु विरुद्धनामका हेत्वाभास कहा जायगा तथा पर्वतादिकमें जो तृणादिककी अग्नि साधनीय है वह महानसादिक में नहीं है, अतएव उदाहरण भी साध्यविकल हो जायगा और इस तरह यह अनुमान भी उपपन्न नहीं हो सकेगा । ९५६. यदि यह माना जाय कि 'पर्वतादिकमें पर्वतीय, चत्वरीय. महानसीय आदि देशादिविशेषयुक्त सामान्य-अग्नि सिद्ध की जाती है, इसलिये साधन इष्टविरुद्ध साधक नहीं है अर्थात् विरुद्ध हेत्वाभास नहीं है और न उदाहरण साध्यशून्य है, क्योंकि महानस आदिमें भी महानसीय, चत्वरीय आदि देशादिविशेष युक्त सामान्यअग्नि मौजूद रहती है ।' तो शरीरादिकों में भी अपने शरीरादि कार्योंको रचनेकी शक्तिसे युक्त सामान्य बुद्धिमान् निमित्तकारणकी सिद्धि की जाती है, इसलिये प्रकृत 'कार्यत्व' हेतु इष्ट से विरुद्धको सिद्ध करनेवाला अर्थात् विरुद्ध हेत्वाभास नहीं है और न दृष्टान्त साध्यशून्य है क्योंकि अपने कार्योंके रचनेकी शक्तिसे युक्त सामान्य बुद्धिमान् निमित्तकारणरूप साध्य वस्त्रादि दृष्टान्तमें विद्य - ईश्वर-परीक्षा 1. मु 'सति' नास्ति । 2. स ' खदिरपलाशा - ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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