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________________ ५० आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटीका [ कारिका ९ तव दृष्टनिमित्तत्वात्तद दृष्टस्य चेतनारूपत्वात् चेतनायाश्च बुद्धित्वादबुद्धिमन्निमित्त [क] त्वसिद्धेरिति; तदप्यसारम्; तन्वाद्युपभोक्तृप्राणिनामदृष्टस्य धर्माधर्मसंज्ञकस्य चेतनत्वासिद्धेरबुद्धित्वात् । अर्थग्रहणं हि बुद्धिश्चेतना । न च धर्मोऽर्थग्रहणमधर्मो वा तयोर्बुद्धेरन्यत्वात् प्रयत्नादिवदिति नानेकबुद्धिमन्निमित्त[क] त्वं तन्वादीनां सिद्ध्यति । यतः सिद्धसाधनं बुद्धिमन्निमित्त[क]वसामान्ये साध्येऽभिधीयते ' । $ ५५. ननु च वस्त्रादि सशरीरेणा सर्वज्ञेन च बुद्धिमता कुबिन्दादिना क्रियमाणं दृष्टमिति तन्वादिकार्यमपि सशरीरासर्वज्ञबुद्धिमन्निमित्तं सिद्ध्येदितीष्टविरुद्धसाधनाद्विरुद्धं साधनम् । सर्वज्ञेनाशरीरेण क्रियमाणस्य कस्यचिद्वस्त्रादिकार्यस्यासिद्धेश्च साध्यविकलमुदाहरणमिति कश्चित्; क्योंकि हम शरीरादिकको उनके भोक्ता अनेक बुद्धिमान्निमित्तकारणजन्य मानते ही हैं । कारण, शरीरादिक तदुपभोक्ता प्राणियों के अदृष्टसे उत्पन्न होते हैं और अदृष्ट चेतनारूप है तथा चेतना बुद्धि है और इस तरह शरीरादि बुद्धिमान्निमित्तकारणजन्य स्पष्टतः सिद्ध हैं ?" समाधान - यह कथन भी निस्सार है, क्योंकि शरीरादिकके उपभोक्ता प्राणियों का जो धर्म और अधर्म नामका अदृष्ट है वह चेतनारूप नहीं है । कारण, वह बुद्धि नहीं है । अर्थग्रहण - ( अर्थको जानना ) - का नाम बुद्धि है और उसे ही चेतना कहते हैं । किन्तु धर्म अथवा अधर्म अर्थग्रहण नहीं हैं, क्योंकि वे दोनों बुद्धिसे भिन्न हैं, जिस प्रकार प्रयत्नादि बुद्धिसे भिन्न हैं । अतः शरीरादिक अनेक बुद्धिमान्निमित्तकारणजन्य सिद्ध नहीं होते, जिससे शरीरादिकको सामान्यबुद्धिमान्- निमित्तकारणजन्य सिद्ध करनेमें सिद्धसाधन कहा जाय । $ ५५. शङ्का - वस्त्रादिक सशरीरी और असर्वज्ञ बुद्धिमान् जुलाहादिद्वारा बनाये गये देखे जाते हैं अतएव शरीरादिक कार्य भी उक्त दृष्टान्तके बलसे सशरीरी और असर्वज्ञ बुद्धिमान्निमित्तकारणजन्य सिद्ध होंगे और इसलिये साधन इष्ट - ( अशरीरी सर्वज्ञ ) से विरुद्ध — सशरीरी और असर्वज्ञ बुद्धिमान्निमित्तकारणको सिद्ध करनेसे विरुद्ध नामका हेत्वाभास है तथा सर्वज्ञ और अशरीरी बुद्धिमान्निमित्तकारण द्वारा किया गया कोई वस्त्रादि कार्य न होनेसे उदाहरण साध्यविकल है अर्थात् उदाहरण ( वस्त्रादिकार्य ) में साध्यका अभाव है ? 1. मु 'धार्यते' | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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