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________________ कारिका ५ ] ईश्वर - परीक्षा २३ , रिष्यते गुणपदस्य कर्मपदस्य सामान्यपदस्य विशेषपदस्य च यथा समवायपदस्यैकः समवायोऽर्थः इति कथं षट्पदार्थ व्यवस्थिति: ? $ २५. स्यान्मतम् - पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशकालदिगात्ममनांसि नव द्रव्याणि द्रव्यपदस्यार्थ इति कथमेको द्रव्यपदार्थ : ? सामान्यसंज्ञा भधानादिति चेत्; न; सामान्यसंज्ञायाः सामान्यवद्विषयत्वात्तदर्थस्य' सामान्यपदार्थत्वे ततो विशेषेष्व प्रवृत्तिप्रसंगात् । द्रव्यपदार्थस्यैकस्यासिद्धेश्च । पृथिव्यादिषु हि द्रव्यमिति संज्ञा द्रव्यत्वसामान्यसम्बन्धनिमित्ता । तत्र द्रव्यत्वमेकं न द्रव्यं किञ्चदेकमस्ति । द्रव्यलक्षणमेकमिति चेत्, तत्कि - मिदानीं द्रव्यपदार्थोऽस्तु ? न चैतद् युक्तम्, लक्ष्यस्य द्रव्यस्याभावे तल्ल न 'गुण' 'पद', 'कर्म' पद, 'सामान्य' पद तथा 'विशेष' पदका एक अर्थ माना है । जैसा कि उन्होंने 'समवाय' पदका एक 'समवाय' अर्थ स्वीकार किया है । ऐसी हालत में उनके छह पदार्थोंकी व्यवस्था कैसे हो सकती है ? अर्थात् नहीं हो सकती है । $ २५. शङ्का - पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन ये नव द्रव्ये द्रव्यपदका अर्थ हैं- द्रव्यपदार्थ हैं ? समाधान-यदि ऐसा है तो एक द्रव्यपदार्थ कैसे सिद्ध हुआ ? अर्थात् उक्त द्रव्योंको द्रव्यपदका अर्थ माननेपर एक द्रव्यपदार्थ सिद्ध नहीं होतानौ सिद्ध होते हैं । यदि यह कहा जाय कि द्रव्यसामान्यकी संज्ञासे एक द्रव्यपदार्थ कहा जाता है अर्थात् सब द्रव्योंकी 'द्रव्य' यह सामान्यसंज्ञा है, अतः उसकी अपेक्षासे एक द्रव्यपदार्थ माना गया है तो यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि सामान्यसंज्ञा सामान्यवानों - विशेषोंको ही विषय करती है और यदि उसका अर्थ सामान्यपदार्थ स्वीकार किया जाय तो फिर 'द्रव्य' पदसे विशेषों - पृथिवी, जल आदि द्रव्यविशेषोंमें प्रवृत्ति नहीं हो सकती है क्योंकि जिस पदका जो अर्थ होता है उससे उसी में प्रवृत्ति होती है, अन्य नहीं । अतएव द्रव्यसामान्यसंज्ञाका द्रव्यत्वसामान्य अर्थ माननेपर द्रव्यत्वसामान्य में ही उससे प्रवृत्ति हो सकेगी, पृथिव्यादि विशेषद्रव्यों में कदापि नहीं हो सकती है । दूसरे, द्रव्यपदार्थ एक सिद्ध नहीं होता, क्योंकि पृथिव्यादिकों को जो 'द्रव्य' यह सामान्यसंज्ञा है वह द्रव्यत्वसामान्यके सम्बन्धसे है और इसलिए द्रव्यत्व एक सिद्ध होगा, न कि एक द्रव्य । शङ्का — द्रव्यलक्षण एक है, अतः द्रव्यपदार्थ भी एक ही है ? समाधान - यदि द्रव्यलक्षणको एक होनेसे द्रव्यपदार्थ एक है तो क्या 1. ' द्रव्यपदस्यार्थस्य' इति व टिप्पणिपाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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