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________________ २१ कारिका ५] ईश्वर-परीक्षा सम्यग्मिथ्योपदेशविशेषाभावप्रसङ्गात् । [वैशेषिकाभिमततत्त्वपरोक्षाद्वारेण तदीयाप्तस्य परीक्षा ] २३. स्यान्मतम्-वैशेषिकैरभिमतस्याप्तस्य निश्रेयसोपायानुष्ठानोपदेशस्तावत्समीचीन एव बाधकप्रमाणाभावात् । श्रद्धाविशेषोपगहीतं हि सम्यग्ज्ञानं वैराग्यनिमित्तं परां काष्ठामापन्नमन्त्यनिःश्रेयसहेतुः' इत्युपदेशः। तत्र श्रद्धाविशेषस्तावपादेयेषपादेयतया हेयेष हेयतयैव श्रद्धानम्। सम्यग्ज्ञानं पुनर्यथावस्थितार्थाधिगमलक्षणम् । तद्धतुकं च वैराग्यं रागद्वेषप्रक्षयः । एतदनुष्ठानं च तद्भावनाभ्यासः। तस्यैतस्य निःश्रेयसोपायानुष्ठानस्योपदेशो न प्रत्यक्षेण बाध्यते, जीवन्मुक्तेस्तत एव प्रत्यक्षतः कैश्चित्' स्वयं संवेदनात् । परैः२ संहर्षायास विमुक्तेरनुमीयमानत्वात्, किसी एकके उपदेशको सम्यक् और दूसरेके उपदेशको मिथ्या नहीं बताया, जा सकता है, या तो सभी के उपदेश सम्यक् कहे जायेंगे या मिथ्या कहे जायेंगे । पर ऐसा नहीं है। अतः अन्योंका व्यवच्छेद करके परमेष्ठीका निश्चय करना सर्वथा उचित है। $ २३. शङ्का-वैशेषिकोंने जिन्हें आप्त स्वीकार किया है उनका मोक्षमार्गानुष्ठानका उपदेश तो सम्यक् ही है क्योंकि उसमें कोई भी बाधकप्रमाण ( विरोध ) नहीं है। श्रद्धा विशेषसे युक्त जो सम्यग्ज्ञान है और जो वैराग्यमें कारण है वही सम्यग्ज्ञान बढते-बढते जब सर्वोच्च सीमाको प्राप्त हो जाता है तो उसे ही वैशेषिकोंके यहाँ परनिःश्रेयसका कारण कहा गया है। उपादेय-ग्रहणयोग्य पदार्थोंमें उपादेयरूपसे और हेयोंछोड़नेयोग्य पदार्थोंमें हेयरूपसे जो श्रद्धान-रुचि होती है वह श्रद्धाविशेष है और जो पदार्थोंका यथार्थ ज्ञान है वह सम्यग्ज्ञान है तथा उस सम्यग्ज्ञानसे होनेवाला जो राग और द्वेषका सर्वथा क्षय है वह वैराग्य है और इन तीनोंकी ही भावनाका अभ्यास करना इनका अनुष्ठान है। सो इस मोक्षमार्गानुष्ठानका उपदेश न प्रत्यक्षसे बाधित है क्योंकि जो जीवन्मुक्त हैं वे तो उसी प्रत्यक्ष ( स्वसंवेदन-प्रत्यक्ष ) से जीवन्मुक्ति ( अपरनिःश्रेयस ) का अनुभव कर लेते हैं और दूसरे ( छद्मस्थ ) राग-द्वेषके अभावसे उसका १. जीवन्मुक्तः । २. जीवन्मुक्तभिन्नैः छद्मस्थैरस्मदादिभिरित्यर्थः । ३. रागद्वेषौ । 1. व टिप्पणिपाठः 'वैशेषिकस्य' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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