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जुगाइ-जिणिद-चरियं सुमुणिय-परमत्थ-विवज्जियस्स अबुहोहदिण्ण-पसरस्स । मयरद्धयस्स बाणा पडंति पुण्णेहिं रहियस्स ॥५७४॥ किंच
काममहागहगहिओ पयडियाणेगवियारो पुरिसो कामे चेव अहिलसंतो न पज्जुवासेइ गुरुजणं, न पडिवज्जइ दयाधम्म, न सुणेइ हिओवएसं. न बहु मन्नइ जणणि-जणयाणि, अकल्लाणमिव मन्नइ कल्लाणमित्ते, तिण-तुल्ले मन्नइ बंधओ, लज्जइ देव-वंदणेणं, पलाइ पणइयण-दंसणेणं, न पेच्छइ हियाहियं, न परिहरइ भक्खाभक्खं, न गणइ पेयापेयं, सव्वहा मयर-द्धय-सर-विसर-सल्लिय-सरीरो अमुणिय गम्मागम्मविभागो, पयंगो विव दीवसिहारूवपडिबद्धो, गइंदो विव करेणुया-फास-मोहिओ, मीणो विव रसणा-वसमुवागओ, भसलो विव गय-गंडयल-गंध-लुद्धो, कुरंगो विव गोरी-गीयपडिबद्ध-माणसो, दुह-परंपराओ पाउणइ । अओ महा-पुरिसपरिहरिएसुसाहुजण-मलिय-दप्पे कंदप्पे सव्व-जहण्णे, पुरिसत्थेसु पुरिसेण नायरो कायव्वो। अवि य-उभय-भव-सुहावहे तित्थयराइ-महापुरिस-सेविए धम्मे चेव जइयव्वं ।
एत्थंतरम्मि नमिऊण सूरि-पय-पंकयं पयत्तेण । निन्नामिया पयंपइ तविय-तणू दुक्ख-दहणेण ॥५७५।। भयवं! सुरनरसंथय ! संसय-तिमिर-तरुण-रवि-तेया। कि अत्थि कोई अन्नोविदुक्खिओमज्झ सारिच्छो? ॥५७६।। अह भणइ सजल-जलधर-सरेण संजणिय-सयल-जण-तोसो। अइसय-नाण-वियाणिय-तिहुयण-गय-वत्थु-परमत्थो ॥५७७॥
"निन्नामिए ! तुह सद्दा सुहासुहा । सुइ-पहमागच्छति रूवाणि वि सुंदर-मंगुलाणि पाससि, गंधे सुहासुहे अग्घाएसि, रसे वि मणुण्णामणुण्णे आसाएसि, फासे वि इट्ठाणि? पडिसंवेदेसि, छुहाइया जं वा तं वा भुंजसि, तण्हाइया इच्छाए तडागाइ-जलं पिबसि, तमसि जोइ-पगासेण कज्जाणि करेसि, महा-वाहिपीडियाए पडियारं पि कोइ ते करेज्जा, रयणीए इच्छाए सयणं पि ते साहीणं, सीयाओ उण्हं उण्हाओ वा सीयं, पइ संचारो वि ते सवसो, सुह-दुक्खमुणितगो वि ते विज्जइ।
जं पुण पेच्छसि अन्नाण पुण्णवंताण गरुय-रिद्धीओ। मन्नेसि तेण गुरु-दुक्ख-दुक्खियं अप्पयं भद्दे ॥५७८।। जे पुण तुमाओ दुहिया नेरइया तिरियजोणिया मणुय। । ते' जइ पाससि तो तुह सुह-बुद्धी कह न होज्जासि ॥५७९।।
जओ-- नरए नेरइयाणं निच्चमसुहा सद्द-रूव-रस-गंध-फासा निप्पिडियाराणि परमदारुणाणि सीउण्हाणि छुहा-पिवासाओ य न खणमवि उवसमंति । नयण-निमेसंतरमवि न सुह लेसं अणहवंति भवपच्चइयं परमाहम्मिय-निम्मियं च छेयण-भेयणाइजणियमसुह-वेयणं वेएमाणा कालं गति । तिरिया वि सपक्ख-परपक्ख-जणियाणि सीउण्ह-खप्पिवासाइयाणि जाणि दुक्खाणि अणुहवंति ताणि बहुणा वि कालेण को सक्को वन्नेउं । जओ--
तिरिया कसंकुसारा-निवाय-वह-बंध-मारण-सयाई । तण्हा-छहा-किलंता सहति बहुसो परायत्ता ॥५८०।। मणुयत्तणेवि जच्चंध-पंगुला सयण-परियण-विहीणा । दे देहि देहि देहि त्ति जंपिरा पर-घर-मुहेसु ॥५८१।। वत्थाहरण-विलेवण-घरघरिणि-विवज्जिया महापावा । छुह-तण्ह-सीयवायायवेहिं परिसोसियसरीरा ॥५८२।। साहारणं पि तेसि जल-जलण-वण-फलाइयं कि पि । पर-दिण्णं संपज्जइ न अप्पणा ते अओ दुहिया ॥५८३।।
एवं सुणिय संजाय-संवेगाए भणियं निन्नामियाए--"भयवं! एवमेयं नत्थेत्थ संदेहो । धन्नाहं जीए संसार-कंतारसमुत्तरगपरमसत्थाहकप्पा, दुहिय-जणजणणिसन्निहा, निक्कारणबंधुणो तुब्भे पाविया। ता धम्म-पह-पयंसणेण पुणो वि अणुग्गहं कुणतुणे भयंतारो। सूरिणा भणियं--"भद्दे ! जइ एवं ता सुणसु सावहाणा। इहाणोरपार-संसाराडविं परिपडताण कम्म- भर-पणोल्लियाणं पाणिणं कह-कह-वि दुविह-पह-संपत्ती हवइ। जओ--
दुविह-पहो सिव-पह-सामिएहिं निन्नामिए समक्खाओ । दव्व-पही भावपहो दव्व पहो तत्थिमो ताव ॥५८४।।
१ सुर्णतो वि पा०।२ जेण पुण जे०।३ वे जइ जे०।४ यत्तणेण नच्चंघ जे० ।५ परिणोसिय जे० । ६ समत्तरेण जे०।
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