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निन्नामिय-वुत्तंतो
विरलाण चेव जायइ सम्म-दसण-बुद्धी,' सहहंता विन बहवे संजमं पइ वावारयति वीरियं, ता भव्वा! जइ तुब्भे भव (भ)मणभीय-माणसा ता सयल-कल्लाण-परंपरा-निबंधणे, संसार-सायर-तरण-तरंडोवमे, गरुय-दुह-दंदोलि-सिहरि-सिहरदलण-दंभोलि-सन्निहे, अहरिय-चिता-मणि-कामधेणु-कप्पपायव-माहप्पे, सचराचर-जीवजोणि-निक्कारण-बंधवे, . सुह-परंपरा-साहणसमत्थे, परिहरिय-परम-वेरिणं पमायं जिणधम्मे समुज्जमं करेह । जओ-संसारसमावण्णगाणं पाणिणं तओ पुरिसत्था पण्णविज्जति । तं जहा-धम्मो, अत्थो, कामो य । तेसु पुण पहाणो धम्मो चेव इयरकारणत्तणओ। किंचइहलोगे वि धम्माओ नासंति वाहिणो, पसमंति ईईओ, पलायंति वेरिणो, न दुर्मिति दुटुग्गहा, न किलेसयंति किलेसायासा, न छिवंति पिय-विप्पओगा, न पीडंति केसरिणो, न ढक्कंति दुस्सुमिणा, विहडंति विविहवसणाणि, न विसट्टति सारीर-माणस-वेयणाओ, मुसुमूरिज्जति चित्त-संतावा, निद्दलिज्जति पयंड-पडिवक्खा, दलवट्टिज्जति अणि?-संपओगा, तहा धम्मेणं चेव पुरिसाण पसरइ पायवो, वियंभइ जसुप्पीलो, वियरइ कूदेंदु-निम्मला तिहयणे वि कित्ती, संपज्जइ सयल-समीहिय-संपत्ती, संपज्जति झत्ति चितिय-मणोरहा, अहमहमियाए चरिति रम्म-रमणीओ। अवि य--
धण-धन्न-रूय-संपय-सोहग्गारोग्ग-इच्छियसुहाई । होंति किलेसेण विणा नराण धम्माओ सव्वाइं ॥५६५ ।। रह-तुरय-पक्क-पाइक्क-मत्त-करिनाह-संकुले समरे । गण-रंजिय व्व ताणं जय-लच्छी लुलइ वच्छम्मि ॥५६६॥ परमत्थ-संठियाइं पयमग्ग-फरत-नय-सम हाई । नयचक्क-विन्भमाइं धम्मेण कुणंति सत्थाई ॥५६७।। कुंदेंदु-संख-हलहर-तिणयण-हासोह-विब्भमो पयडो। धम्मेणं चिय दिसि दिसि नराण विष्फुरइ जस-निवहो ॥५६८॥ गरुय-पओहर-भिज्जंत-मज्झ-वित्थिन्न-गरु नियंबाओ । सरसारविंद-सरिसाणणाओ लब्भंति महिलाओ ॥५६९।। जंजंचितेइ मणे तं तं धम्मेण लहइ इह जीवो । कप्पतरु-सेवओ चितियं भण कि न पावेइ
॥५७०।। दुट्टट्ठ-कम्म-सलिलं कसिण-कसायउरगं-महाभीमं । लीलाए तरंति नरा भव-जलहिं धम्म-पोएण ॥५७१॥
अओ धम्मो चेव उत्तम-पुरिसत्थो, अत्थो पुण तरुण-तरुणी-कडक्खो विव चंचलो, वेसा-जोव्वणं पिव बहु-जण-पत्थणिज्जो, विस-भाविय-भोयणं पिव मह-महरो विवाग-दारुणो, जलहि-तरंगो विव भंगुरो, सप्प-करंडओ विव दुक्ख-रक्खणिज्जो। विसभाविय-भोयण पिव मुह-महुरो विवाग-दारुणो जलहितरंगो विव भंगुरो, सप्पकरंडओ विव दुक्ख-रक्खणिज्जो। अण्णं च-अत्यत्थिणो य पुरिसा लंघति सायरं, वियरंति विझमहागिरिवरोयरेसु, भमंति भमंत-भीसण-सावय-भयाणयासु महाडवीसु, पविसंति पय-पूर-दुग्गमासु महा-नईसु, करिति पर-घरेसु अहम्म-कम्माई, वंचंति पिय-मित्ते, घायंति बंधुणो, दंडी-खंड-निवसणा पासेयसित्ततणुणो, 'एहि सामि एहि त्ति चाडुसयाणि पकुव्वंता पहावेंति पहण पुरओ, परिचत्तकुलाभिमाणा निवडंति वंसग्गेसु, न गणंति कज्जाकजं, न वियारिति इह-पर-लोय-विरुद्धाणि, न पेच्छंति जणाववाए न निरुवंति नरय-दुक्खं न मुणेति तिरिय-गइ-भयाणि, न आलोइंति चउ-गइ-पह-पहियत्तणं । सव्वहा निरंकुसा विव करिणो, वियलिय-खलिया विव तुरंगमा, पंजरमुक्का विव केसरिणो, करंडय-नीहरिया विव आसीविसा, सरय-समय-पुट्ठ-दप्पिट्ठवसहा विव निरग्गला, इह-पर-लोय-निरवेक्खा पय,ति दुग्गइ-पह-पाहुडे पाणाइवाए, जंपति अलियं, अवहरंति परदव्वं, वच्चंति पर-कलत्तंसु, करिति महारंभ-परिग्गह, भुंजंति रयणीए। तओ परपीडाजणिएण कम्मुणोवलित्ता भमंति नारयतिरिय-नरामर-संकुलं संसार-कतारं। जइ परमणत्थहे उणा वि इमिणा दग्वेण सुपत्त-निउत्तेण परंपराए पाविज्जइ सग्गो मोक्खो य मज्झिमो एस पूरिसत्थो । अवि य-- . नीसेस-बहु-निबंधणधणेण जइ कह वि लब्भए मोक्खो । पत्तं पत्तेण परंपराए नासनसन्नभावेण ॥५७२।।
अत्थो वि भाव-पुरस्सरं सुपत्त-पत्तो परंपराए मोक्खसाहणो चेव । अओ मज्झिमो एस पुरिसत्थो । कामो पुण आययणं अविणयस्स, आहारो अयसस्स, कुल-भवणमावयाणं, उप्पत्ती महा-दोसाणं, खेत्तं संतावानलस्स, मंदिरं महा-साहसाणं, जलयागमो गुण-धयरटाणं, गेहमनिव्वुईए, अवत्थाणं मइलणाए, निलओ महापाव-रासिणो, जणओ सारीरमाणस-दुक्खाणं । अवि य
संजणियासेस-महादुहस्स निट्ठविय-निव्वुइ-सुहस्स । मज्जायाइक्कम-कारयस्स अवसाण-विरसस्स ॥५७३।। १.सणसुद्धी पा० ।
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