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जुगाइजिणिंद-चरियं
विसुद्ध-कम्म-पंकया विलुप्पमाण-सोयया, विसुज्झमाण-नाणया दलिज्जमाण-कोहया ।। मियंक-कंति-सोम्मया जयम्मि पुण्ण-लब्भया, मुणिंद-सासणुज्जया पसत्थ-झाण-संगया। सुयंग-पारगामिणो वियंभमाण-सामिणो, घडंत-सच्चवाइणो जिणिद-मग्ग-गामिणो ।। विसाल-कित्ति-चारिणो नहम्मि वेग गामिणो। त्ति ।।५४७।।
अवि य
नाणं च मज्झे सुरसेलो विव गिरिवराणं, संयभुरमणो विव सागराणं, रायहंसो विव हंसाणं, नमी विव विज्जाहराणं, तिणयणो विव गणाणं, एरावणो विव करिवराणं सक्कतुरंगमो विव हयाणं, गरुडो विव विहंगमाणं, विहप्फई विव बद्धिमंताणं सुरहिमा सो विव सेसमासाणं । सरय-मियंको विव सोमदंसणो गोयमो विव सयललद्धिसंपन्नो, तीयाणागयपडुपन्न-वत्युवित्थरवियाणगो, चउनाणोवगओ, पुरवर-कवाड-वित्थिण्णवच्छत्थलो जुगबाह जुगंधरो नाम आयरिओ।
उत्तत्त-कणयवण्णो, सावय-जण-कप्पपायवसमाणो । तरुणरवि-मंडलनिभो, महि-मंडल-पायड-पयाओ ।।५४८।। सुपसत्य-सत्थ-सोहिय-दाण-दया-सील-भाव-घडिएण। धम्मेण भूसियंगो, निद्रवियासेस-द्रहपसरो ॥५४९।। असमो वि समनिवासो, सारंगधरो वि एणपाडवक्खो। अमयमओ वि हु समओ, असरिसचरणो वि समगामी ॥५५॥ उज्झिय दंडोवि सया-कर-कलिय-सुवण्ण-वण्ण-वरदंडो । जणजणियगारवो विहु अ-गारवो निग्गुणो सगुणो ।।५५१।। चंदोव्व विबुहकलिओ सूर-नरिंदोव्व विजिय-विसयगणो । गंगा-पय-पूरो विव तिहुयण-जण-पावणसमत्थो ।।५५२।। उज्झिय-धम्मो वि सया नव-नव-सद्धम्मभरिय-भंडारो। पंचमहन्वय-कलिओवि पढम-वय-रेहिर-सरीरो॥५५३।। संतावओ वि सुहओ अणंगरूवो वि सुंदरायारो । कण्णंत-पत्त-नेत्तो वि नेव सच्चविय संसारो ॥५५४।। जणसंकरो न सूली अच्चुयसीलो न लच्छि पडिबद्धो । चउरमुहो न य बंभो बुद्धो न य धम्मकित्ति-पओ ।।५५५।। चंदो न य सकलंको दिवायरो ने य तविय जियलोओ। सुक्को न देव-दोसी देव-गुरू नेव असुरारी ॥५५६॥ कप्पतरु न जडप्पा मंदरतुंगो न थावर-सहावो। महिमालओ न जलही अद्दामलओ वि अकसाई ॥५५७।। सर-सेलो विव सावय-समूह-सेविय-विसाल-पय-वीढो। अइ-जच्चफुरंतुत्तत्त-कमणीय-कतिल्लो ॥५५८।। भाण विव भुवणयले अच्चतावयंभमाण-हय-दोसो। पयडिय-समत्थ-सुपसत्य-सत्थ-परमत्थ-वित्थारो ॥५५९।। तिहयणभरिओव्वरिएण नियजसेणेव निम्मअपडेण। मगर-गओ विव सूरो सोमो-कय उत्तरासंगो ॥५६०॥ कलिकालकलिल-कलुसिय-मणाण जीवाणणुग्गहट्टाए ।विहरइ महिं महप्पा कय-विग्गह-संगहो धम्मो ॥५६१।। निन्नामियाए नमिओ भत्तिभरुभंतलोयणजुयाए। जणसहियाए भयवं भवन्नवत्तारणतरंडो
॥५६२॥ देवासुर-न-किन्नरपमुहा परिसा पयक्खिणं काउं। उचियासणे निसन्ना भत्तिभरुभिन्नवरपुलया ॥५६३।। अह गंभोर-मगोहर-सरेण भवाण निव्वुइ-करेण । पारद्धा धम्मकहा सवण-सुहा भगवया तेण ॥५६४॥
जओ
"भो भो भव्वा असारो एस संसारो। किपाग-फलं व मह-महरा, विरसावसाणा विसया, करिकण्ण-चंचलाओ रिद्धीओ, वायविहुय-कुसग्ग-लग्ग-जल-बिंदु-चंचलं जीवियं, पंच-दिणरमणीयं जोव्वणं, एग-रुक्ख-निवासि-सउण-गणसमाणा पियजण-समागमा, पलियच्छलेण पइदिणं लद्धावगासा सिरं समारोहइ जरा-रक्खसी, आम-मल्लग-निवडिय-जलमिवपइदियहं परिसुसइ आउय-सलिलं, अगंत-संसार-कारणं कसाया, दुग्गइ-पहपत्थियाणं समासोयाणपंतिया, अविरई-हियाहिय-वियार-निसग्गसत्तकप्पं मिच्छत्तं । सथायरण-विबंधगा दुटु-जोगा, विजिय-सयल-तिहुयणो पच्चासन्नो सया मच्च, समुद्द-पडिय-रयणं व दुल्लहं माणुसत्तणं, । तम्मि वि दुक्खलब्भा सु-गुरु-सामग्गी,। तत्थ वि बहु-पुण्ण-पावणिज्जा सद्धम्मसवण-बुद्धी, सुणंताण वि
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