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निनामिय-वुत्तंतो
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फुडिय-कक्कस-केस.ओ, चिविड-फोक्क-नासाओ, मुह-कुहर, इक्कंत-विसम-दसण,ओ, लंबीयर ओ, बहु-भक्खिराओ, पाबपरिणईओ विव मुत्तिमंताओ, उवरोवरि जायाओ, सुलक्खण-सुमंगल-धणिया-उज्झिया-तुंदिला-कुडिहियाभिहाणाओ सयलजण-उवहसणिज्जाओ छ धूयाओ।ततो नाइलो बहु-धूया-जम्मेण सयल-जण-परिभवेण अच्चंत-दारिदेण य अभिभुओ चितिउमारद्धो--"अहो मे पाव-परिणई ! अहो मे नरभवे वि नरयभवो! कि करेमि, कन्थ वच्चामि, कस्स कहेमि, कि कयं सुकयं होइ ति चितासोय-सागरावगाढो चिटुइ । अन्नया पुणो वि कम्म-वसेण आवण्ण-सत्ता जाया नागसिरी। जओ-- दालिद्दय तुम्ह गुणा जं रुच्चइ जवसो य आहारो। भुक्खा य होइ पउरा भज्जा य वियाउरी होइ ।।५३५।।
तओ तेण चितियं--"जइ पुणो वि धूया। इमीए होज्ज तो मए देसंतरे गंतव्वं'। जावय सो एवं चितापरायणो चिइ तावय पसूया भज्जा । निवेइओ तस्स धूया जम्मो' ति । तओ वज्जवडणाइरित्तदुक्खदुक्खियहियओ निग्गंतूण घराओ देसंतरं गओ। नागसिरी वि पुणरुत्तदुहिया पसवदावानल-दज्झमाण-माणसा पइ-गमण-सोय-सागरावगाढा अच्चंत-दुक्खिया।
हे देव्व ! खए खारं खरं खिवंतेण मज्झ कि मुक्कं । कि नत्थि कोई अन्नो जयम्मि दुक्खाण जोगो त्ति ॥५३६।। हा विहि! विहेसु मरणं सरणं मह नत्थि कोइ जियलोए। गय-वइयाए दूसह-दालिद्द-दवग्गि-दट्ठाए ॥५३७॥
इच्चाइ विलवमाणी कह-कह वि कालं गमेइ। न य तीए सत्तम-दुहिया ए अच्चंत-निल्लक्खण त्ति काऊण नाम पि कयं । न य सम्म पडियरइ। परं असुहाओ य सेसयाए संवड़िया अच्चंत-दुक्खिया दोहग्ग-दोस-दुसिया निन्नामिय ति लोए पसिद्धि गया। पर-घर-कुकम्म-कारिणीए जणणीए वि नयण-मण-उव्वेय-कारणं असंपन्नेच्छिय-खाण-पाणावर-वत्थाहरणविवज्जिया कालं गमेइ ।
अण्णया कम्हि महसवे ईसर-डिभरूवाणि मोयगाइ-भक्ख-भरिय-भायणाणि दह्रण नियजणणी जाइया ।"अम्मो! मज्झ वि मोयगाइयं देसु ।" तीए भणियं--अकयपुण्णा तुम भक्खिहसि मोयगे पिया वि ते भक्खिया। इओ ता वच्च रज्जु गहाय अंबरतिलयं पब्वयं। तत्थ य मरसु वा फलाणि वा खाएसु, जइ जीयसि कट्ठाणि घेत्तूण आगच्छसु त्ति फरुस-वयण-पुरस्सरं गले घेत्तूण निद्धाडिया। तओ सा वयण-मेत्तेण वि अणास.सिया विमणदुम्मण, ओरुण्ण-मुही गलंत-वाहसलिल. सकरुण-जण-जणियाणुकंपा, जम्मंतर-कय-दुक्कियाणि वारंवारं निंदंती, दुक्खभर-भरिय-माणसा रज्जु घेत्तूण निग्गया घराओ। दीहुण्हे नीसासे मुयमागी तग-कट्ठपत्ताहारेहि समं संपत्थिया । पत्ता य तं पब्वय-वरं । सच्चविओ सो तीए गिरिवरो अवि य--
अइ-कसिग-निद्ध-जलहर-खंड पिव लोय-लोयणाणंदो। उतुंग-सिहर-हत्थेहि मिणिउ-कामो व्ब गयणयलं ॥५३८।। झरमाण-निज्झराराव-भरिय-गिरि-गरुय-कुहर-दिसि-विवरो। नर-विज्जाहर-किन्नर-मिहुणसमारद्ध-गंधव्वो ॥५३९।। गंधड्ढ-साउ-फल-फुल्ल-पत्त-भर-भरिय-तरुवर-सणाहो। बहु-जाय-पक्खि-सावय-गणाण-कुलमंदिर-समाणो ॥५४०॥ गयणग्ग-लग्ग-सिहरग-भग्ग-रय-रीण-रवि-रह-पयारो। तिवसा-सुर-नर-किन्नर-कय-सेवो मणि-जणाइण्णो ॥५४१।। नामेणं वरतिलओ तिलओ विव अंबरस्स सयलस्स । सयल-वणराइ-रेहिर-वाहिणि-सय-संकुलो तुंगो ।।५४२।। तत्थ जणो नाणाविह-तरुवर-सिहरेसु परिणय-फलाणि । भुंजइ भमइ जहिच्छं सा विपभुत्ताधर-गयाणि ।।५४३॥ लोएण समं सव्वत्थ हिंडिया गिरिवरस्स देसेसु । अण्णत्थ सुणइ सदं गंभीरं सुइ-सुहं सरलं ॥५४४॥ सुणिऊण तयं तत्तो हरिस-वसुभिज्जमाण-पुलियंगी। निन्नामियाए चलिया जणेण सह विम्हयावण्णा ॥५४५।। जा गच्छइ थेव पहं वियड-पयक्कंत-महिहराभोगा। ता दिट्ठा सोम-मुहा सुसाहुणो जणियमण-तोसा ॥५४६।।
जेय जलनिहिणो विव गंभीरा मयरहिया य, मियंककिरणा विव जणमणाणंदा पायडियमहियला य, कप्पतरुणो विव सउणगणसेविया पुण्णलब्भा यत्ति । अवि य--
पणट्ठमाण-मोहया विसट्टमाण-बोहया, वियंभमाण-तेयया तवो-विसेस-संगया।
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