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जुगाइजिणिंद-चरिय
नियमाव-बसीकय-सयल-तरुण-वज्जरिय-गरुय-माहप्पा । माहप्प-विणिज्जिय-तियस-विसर-वर-कामिणि-समूहा ।।५१३।। समुहागय-दीहर-दिट्ठि-बाण-संभिण्ण-कामि-दढ-हियया। हियय-ट्ठिय-तार-फुरंत-हार-रेहत-थणवट्टा . ॥५१४॥ घगवट्ट-पडिय-कण्णंत-पत्त-निय-नयण-कुवलय-समूहा। कुवलय-समूह-सरिसच्छि-तुलिय-हरिणी-नयण-लीला ।।५१५।। लीला-गमण-विणिज्जिय-हंसावलि तुलिय-वरहि-धम्मेल्ला। धम्मेल्ल-वेल्ल-गलंत-कुसुम-रय-रंजिय-दिसोहा ॥५१६।। सोहा-निज्जिय-नीसेस-रमणि-रंगिल्ल-सार-सोहग्गा। सोहग्ग-भग्ग-हरघरिणि-माण-मुणि-मोहण-समत्था ।।५१७॥ इय केत्तियं व भण्णइ सयंपभाए गुणाण रिछोली। सइ दंसणे वि जीए जणो न अण्णं मणे महइ ॥५१८॥ नाणाविह-दीवंतरकाणण-उज्जाण-पब्वयग्गेसु । ललियंगो विसयसुहं सयंपभाए समं रमइ
॥५१९।। वच्चंति वासरा। इओ य सो सयंबुद्धमंती महाराय-मरण-संजाय-संसार-निव्वेओ सिद्धायरिय-समीवे पव्वइओ। परिपालिऊण निरइयारं समण-परियायं मरणाराहण-जुत्तो मरिऊण उक्कोसाउओ ईसाणे कप्पे इंद-सामाणि जाओ। विसय-सुहमणुहवंतो कालं गमेइ । पुव्व-भव-सिणेहेण अत्थि ललियंगएण सह संगयं। अण्णया कयाइ मरण-पज्जवसाणयाए जीवलोगस्स ललियंगयस्स पिया सा। सयंपभादेवी ठिइ-क्खएण चुया। तओ सो दइया-सोय-मोहिय-मई-परिचत्त-नियवावारो विलविउमाढत्तो।
हा पाणपिए ! पणइणि! ममं पमोत्तूण पवसिया कत्थ । संभासो विन विहिओ अहह कहं निठुरा जाया ॥५२०॥ हा ! दइए हिययहरे ! पिहुल-नियंबे ! पओहरक्कते । तणु-तिवलि-वलिय-मज्झे, सयंपभे ! कत्थ दीसिहिसि ।।५२१।। हरिऊण मणं माणिणि कहिं गया मज्झ देसु पडिवयणं । दुक्खं जीवइ विहुरो ललियंगो तुज्झ विरहम्मि ॥५२२।। रणे वा वसिमे वा जले थले आसणे व सयणे वा । तिय-चच्चर-रच्छासु य घरंगणे काणणोववणे ॥५२३।। आयासे पायाले दीव-समुद्देसु तिरिय-लोगम्मि । एगं पि तुमं बहुविहरूवं पेच्छामि सव्वत्थ
॥५२४॥ इच्चाइ विलवमाणो पिया-विओगेण दुक्खिओ दीणो। मित्त-सुरेणं भणिओ सुरिंद-सरिसेण ललियंगो ।।५२५।।
भोभो महासत्त! थोवमिणं पओयणं किमेवं महिला-मेत्त-कए वि चिता-पिसाइयाए अप्पा आयासिज्जइ।" एयमायनिऊण भणियं ललियंगेण--'मित्त ! न थोवमिणं कज्ज । जओ--
वसणे वि ऊसव-समं विहवे लीलाण कारणं परमं । सुकलत्तं सुकलत्तं पुण्णेहिं जए जणो लहइ ॥५२६॥ अण्णोण्ण-कज्ज-वइयर-दूसहसंताव-तावियं हिययं । निव्वावइ वर-दइया सरहौंसमवलोयणजलेण ॥५२७॥ केरिसया व विलासा का वा हिययस्स निव्वुई तस्स । जस्स न समसुह-दुहिया पिया पिया निवसइ घरम्मि ॥५२८॥ पइपय-भत्तं विमुहे वि पिययमे पाय-पडण-पडहत्थं । पच्छाइय-दालिई सीलाहरणं महुर-वयणं ॥५२९।। सुकूलब्भवं सुरूवं मण-नयणानंद-कारणं परमं । जस्स घरे न कलत्तं निरत्थओ तस्स घर-वासो ॥५३०॥ पयइ-असारो विरसो सारो सरसो य एत्तिएणेव। संसारो जं रमणी निवसइ रमणस्स हिययम्मि ॥५३१॥ उडढमहे तिरियाम्मि य हिंडंताणं जणो जए कोइ। सो मिलइ जस्स विरहे भुवणं सुन्नं व पडिहाइ ।।५३२।।
भणियं च--
नयहिं को न दीसइ केण समाणं न हुँति संलावा। जं पुण हिययाणंदं जणेई तं माणुसं विरलं ॥५३३॥ कि जंपिएण बहुणा वयंस ! साहेमि तुज्झ सब्भावं । तीए विणा सग्गो विहु नरओ विव परिणओ मज्झ ।।५३४॥
तओ मणिय-गरुयनेहाणबंधेण पयंपियं इंद-सामाणिय-सुरेण--'वयंस ! जइते एस निब्बंधो ता लद्धा मए तुह महिला।' "ललियंगेण भणियं-कहं चिय? 'इंदसामाणिएण भणियं--'सुणसु, धाई (य) संडे दीवे पुव्वविदेहे वासे नंदिग्गामे गामे आजम्म-दालिद्दिओ सव्वहा विहल-ववसाओ तहाविह-वसणासणाइ-वज्जिओ नाइलो नाम गाहावइ परिवसइ । नागसिरी से भारिया। तीए सह विडंबणा-पायं विसय-सुहमणुहवंतस्स सजल-जलहर-हरगल-गवल-कज्जल-कालाओ,
१. णिओ जाओ जे०। २. काणणेवसणे पा.। ३. निव्वाइ नवरि द. जे. ४. सरभसम जे. 1५. सरुवं जे. ६. जाणइ जे.।
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