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________________ .२८ जगाईजिणिद चरिय भगवान ऋषभदेव चौरासी लाख पूर्व वर्ष का सम्पूर्ण आय भोगकर हेमन्त ऋतु के तृतीय मास पंचम पक्ष में माघकृष्णा तेरस के दिन दस हजार अनगारों के साथ अष्टापद पर्वत पर चौदह भत्त से आत्मा को भावित करते हुए अभिजित नक्षत्र में परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। परिनिर्वाण के पश्चात देवो तथा इन्द्रों ने भगवान का निर्वाण महोत्सव किया। साथ ही जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भरत के दिग्विजय का विशद वर्णन पाते है। प्रस्तुत युगादि जिनदेव चरित्र में उल्लिखित निम्नघटनाएँ आगम साहित्य में अनपलब्ध है । जैसे--भगवान ऋषभदेव के तेरह भवों का वर्णन, भगवान ऋषभ के नामकरण, वंशोप्तत्ति, एक युगल की अकाल मृत्यु से विधवा बनी हई सुनन्दा के साथ विवाह, दीक्षा के समय वार्षिक दान, अक्षय तृतीय के दिन श्रेयांस कुमार के द्वारा इक्षु रस से पारणा (केवल समवायांग सूत्र के अन्त में दी हुई गाथाओं में ही प्रथम भिक्षादाता श्रेयांस कुमार तथा इक्षरस की प्रथम भिक्षा का उल्लेख मिलता है) बाहुबलि का ब्राह्मी के साथ विवाह एवं भरत का सुन्दरी के साथ पाणिग्रहण के लिए किया गया आग्रह, वर्ण व्यवस्था, भरत बाहुबलि का युद्ध और बाहुबलि का एक वर्ष तक वन में तप, ब्राह्मी और सुन्दरी द्वारा बाहुबलि को प्रेरणा, केवलज्ञान, मरुदेवी का हाथी के होदे पर बैठे बैठे केवल ज्ञान आदि घटनाएँ हम आगम साहित्य में नहीं पाते । साथ ही भरत पुत्र मरिची का स्वेच्छानुसार वेश परिवर्तन एवं साँख्यमत की स्थापना आदि घटनाएँ भी आगम साहित्य में उल्लिखित नहीं है। भगवान ऋषभदेव के द्वितीय विभाग में जो चारित्र का विकसित रूप देखते हैं उनमें नियुक्ति भाष्य, चूर्णि तथा टीकाएँ प्रधान है । इनमें भगवान ऋषभदेव का चरित्र विस्तार के साथ वर्णित है । भाष्य तथा चूणियाँ नियुक्ति पर ही रची गई है और इन नियुक्तियों का समय आज के अन्वेषण विद्वान पांचवी छठी वि० शताब्दी के आस पास का मानते हैं । इन नियुक्तियों में भगवान ऋषभदेव विषयक अनेक गाथाएँ उपलब्ध है। जिनमें कुछ गाथाएँ प्राचीन है और कुछ गाथाएँ प्रक्षिप्त है । निर्यक्तिकार ने भगवान ऋषभदेव विषयक जिन घटनाओं का संक्षिप्त में वर्णन किया है आवश्यकर्णिकार ने उन्हीं का विषद रूप से वर्णन किया है । आचार्य वर्द्धमानसूरि ने युगादिजिनदेव चरित्र में आवश्यक चणि में वर्णित भगवान ऋषभदेव विषयक . एवं भरत चक्रवर्ती विजय की सारी घटनाएँ अक्षरश: ली है। आगम नियुक्ति एवं चणि साहित्य के सिवा भगवान ऋषभदेव के विषय में अन्य संस्कृत एवं प्राकृत कई ग्रन्थ उपलब्ध है । प्राकृत साहित्य ग्रन्थों में वसुदेवहिडि का स्थान प्राचीनतम एवं साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है इस ग्रन्थ के निर्माता संघदास गणि है। इसका समय इतिहासकारों की दृष्टि में चौथी पांचवी सदी है । इस ग्रन्थ के चतुर्थ लंभक नीलयशा एवं सोमश्री लंभक में श्री वषभदेव का चरित्र आता है। इसके बाद विमल सूरिकृत पउमचरियम् (रचना स० पांचवी सदी) इसमें भी भगवान ऋषभदेव का चरित्र आता है । इसके अतिरिक्त शीलांकाचार्य कृत चउपण्ण महापूरिस चरियं में (र. सन् ८६८) भुवनतंग सूरिकृत धर्मोपदेश-शतक में प्रद्यम्नसूरि कृत मलशद्धि प्रकरण में वत्तिकार-देवचन्द्र सूरि (र. स. ११ वी) सदी में, कहावली कर्ता भद्रेश्वर सुरि (र. स. ग्यारहवी सदी); शुभ शील गणिकृत भरतेश बाहबलि वृत्ति आदि में, तथा संस्कृत में हेमाचन्द्राचार्यकृत त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र तपागच्छीय पद्मसुन्दर कृत रायमल्लाभ्युदय, मेघविजयकृत लघु त्रिषष्ठी शलाका पूरुष चरित्र, कल्याण विजय शिष्य कृत त्रिषष्टि शलाका पंचाशिका, चन्द्रमुनि कृत लघुपुराण या लघुत्रिषष्ठि लक्षण पुराण, अमरचन्द्र सुरि कृत चतुर्विंशति जिनेन्द्र संक्षिप्त चरितानि, मेरुतुंग सूरिकृत महापुरुष चरित्र, वडगच्छीय हरिभद्रसूरि कृत चतुर्विंशति तीर्थंकर चरित्र (अनुपलब्ध) बृहद् गच्छीय हेमचन्द सूरिकृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001593
Book TitleJugaijinandachariyam
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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