SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८. देवाभिओग पर सम्यग्दृष्टि श्रावक की कथा (पृ० ७०) १९. उपासक पुत्र की कथा (पृ० ७०) २०. वृत्तिकान्तार पर अरिहसार केशव की कथा (पृ० ७०) २१. शंकातिचार पर दो सहोदर भाईयों की कथा (पृ० ७२) यह कथा आव० चू० भा० २ पृ० २७९ में भी है। २२. कांक्षातिचार पर राजा और अमात्य की कथा (पृ० ७३) २३. विचिकित्सातिचार पर गान्धार श्रावक की कथा । यह कथा आवश्यक चूणि भा० २ पृ० २७९ में भी है। २४. परपासंड प्रशंसातिचार पर चाणक्य की कथा (पृ० ७४) यह कथा आवश्यक चूणि भा० २ पृ० २८१ में भी है। २५. परपासंड संस्तवातिचार पर रक्तपट भिक्षु और श्रावक की कथा (पृ० ७४) २६. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के आराधक विराधक सुरूप-प्रतिरूप की कथा। (पृ० ७६) २७. स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के आराधक एवं विराधक विष्नु-ब्रह्म की कथा (पृ० ७८) २८. स्थूल अदत्तादानविरमणव्रत के आराधक विराधक चन्दन-नन्दन की कथा (पृ० ७९) २९. परदारा विरति के आराधक-विराधक पर सुन्दर श्रेष्ठी की कथा (पृ० ८५) इस कथा में परदेश जाते हुए पुत्र को माता की सिखावन, परोपकार परायण सुन्दर श्रेष्ठी पुत्र द्वारा जोगचन्द्र योगी का उद्धार, सुन्दरश्रेष्ठी की शीलवती जयन्ती द्वारा अपने शील की रक्षा के लिए चार खाने वाले पिटारे में राजा, मंत्री, पुरोहित एवं श्रेष्ठी को चतुराई से बन्द कर अपने शील का रक्षण करना। अनेक सार्थों को ठगने वाली एक धूर्त वैश्या की पोल खोल कर अपने मित्र सार्थवाह का सुन्दर श्रेष्ठी द्वारा रक्षण आदि अनेक घटनाओं का संकलन कर इस कथा को आचार्य श्री ने अधिक रूचिपूर्ण बनाया है। ३०. गृहित नियमों का परिपालन करने वाले श्रावक दम्पत्ति की कथा। जैन कथाओं में प्रसिद्ध विजयसेठ और विजयसेठानी जैसी यह कथा भी बड़ी प्रेरक है। (पृ० ९५) ३१. परिग्रह परिमाण के आराधक विराधक गुणचन्द और सुगुप्त श्रेष्ठी की कथा (पृ० ९६) ३२. इस कथा में सत्तुघटक पुरुष की कथा आती है जो लोक प्रसिद्ध शेख चिल्ली की कथा का अनुकरण करती है। (पृ० ९८) ३३. इसी कथा में हरिदत्त पुत्र हरिस्सह ब्राह्मण का वृत्तान्त है जो पितृ श्राद्ध में मृत पिता के तृप्यर्थ अपने पिता के ही जीव की बार -बार हत्या कर पिता के मृत जीव को तृप्त करने का प्रयत्न करता है। २४. परस्त्री गमन के दुष्परिणाम पर कामपाल की कथा (पृ० १०४) ३५. धन की अधिक आय से उन्मत्त बने हुए पवनश्रेष्ठी की कथा। ३६. षड्लेश्या पर छह पुरुषों का उदाहरण (पृ० १६४) ३७. विषय लोलुपता पर मधुबिन्दु का दृष्टान्त (पृ० १९०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001593
Book TitleJugaijinandachariyam
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy