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________________ जुगाइजिणिदचरियं मरना पति के द्वारा रूप बदल कर शीलधना की खोज, शीलधना का कुटुम्ब मिलन एवं अटवी की भयानकता का सजीव चित्रण कवि ने इस कथा में किया है। (पु. ११) ३. इस कथा के बीच एक वैद्य पुत्र की कथा आती है जो अपनी विद्या से मुत सिंह को जीवित करता है और अन्त में उसी से मारा जाता है। आज के जन-जीवन में प्रसिद्ध यह लोककथा उस समय भी प्रसिद्ध थी। (पृ० १८) ४. तपधर्म पर तपतेज कुमार की कथा तपके महात्म्य को प्रकट करती है। ५. भावना धर्म पर भवभीरू राजा का उदाहरण है। राजा भवभीरू के मनि बन जाने के बाद पूर्व भव का एक शत्रु देव अपने वर का बदला लेने के लिए उन्हें एक वृक्ष पर लटका कर लोह कील में जकड़ देता है। शत्रुदेव के द्वारा भयंकर यातना देने पर भी मुनि अपने ही कर्म को दोष देते हुए उस पर समभाव रखते हैं। मन में किंचित भी द्वेष नहीं करते। यह कथा लोह कील में जकड़े हुए ईसु की याद दिलाती है। (पृ० २७) ६. वी कथा में गीतरति, नाट्यरति, चन्द्रानना एवं चन्द्रमुखी की कथा आती है। चन्द्रानना की विषय लोलपता एवं चन्द्रमुखी की आभूषण प्रियता का दुष्परिणाम बड़े ही रोचक ढंग से लेखक ने समझाया है। (पृ० ३४) इस कथा के बीच 'त्वरमाणेन मूर्खेण मयूरो वायसी कृत : यह और लोभी स्यार, सर्प, हाथी एवं व्याध की कथा पंचतंत्र की कथा का अंशतः प्राकृत रूपान्तर है। (पृ० ३७) ७. वी कथा धन्नासार्थवाह की है। इसमें मोक्ष के दो मार्ग का निरूपण है। एक सरल और दूसरा बक्र। इस पर धन्नासार्थवाह का कथानक है। यह एक सुन्दर रूपक दृष्टान्त है। आवश्यक चूणि भाग १, पृ० ५०९ में इस कथा का संक्षिप्त रूप मिलता है। ८. मिथ्यात्व मोह से मोहित जीव अन्ध की तरह होता है। इस पर स्वरवेधी बाण चलाने वाले जन्मान्ध राजकुमार का दृष्टान्त दिया है। (पृ० ४८) यह कथा भी चूणि में मिलती है। ९. सम्यक्त्व के प्रतिपालक एवं जैन शासन के प्रभावक राजा संपत्ति का दृष्टान्त है। (पृ० ४८) यह दृष्टान्त वृहद्कल्प भाष्य (पू० श्री पुण्यविजय जी म. सा. के द्वारा सम्पादित) गाथा ३२७५ में एवं भाष्य में आता १०. राजकुमार कुनाल का वृत्तान्त (पृ० ४९) ११. चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त की कथा, यह कथा आवश्यक चूणि भा० १ पृ० ५६३ में मिलती है। १२. सम्यक्त्व के विराधक राजा गाथा सुन्दर की कथा (पृ० ५९) सम्यक्त्व के छह अपवाद पर छ अलग-अलग अलग दृष्टान्त है १३. प्रथम राजाभियोग पर कातिक सेठ का उदाहरण है। यह कथा भी आवश्यक चूणि भा०२ पृ० २७६ में मिलती है। (पृ० ६४) १४. गणाभियोग पर अरिहमित्र श्रावक की कथा (पृ० ६४) १५. मरुस्थल में प्यास से अत्यन्त व्याकुल एक पशु पालक की प्राण रक्षा के लिए अपने पास के सीमित जल को देकर अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले गान्धार पशुपालक का दृष्टान्त (पृ० ६५) १६. बलाभिओग पर अरिहदत्त श्रावक की कथा। (पृ० ६६) १७. मूर्खता पर श्रेष्ठी पुत्र अभद्र की कथा (पृ० ६७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001593
Book TitleJugaijinandachariyam
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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