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________________ काव्यकल्पलतावृत्तिः परिशिष्ट रसो वलयस्य कर्पूरेणं यथा-- परहुअपंचमसवणसुभगमन्नउं सकिरते भणि। भणइ न किंपि मुद्धकलहंसगिरा चंदु न दक्खिण सक्कइ ।। जं सा ससिवयणि दप्पणि मुहु न पलोअइ निम्मयनयणि । वयरिउ मणि मन्नवि कुसुमसरु खीण सा बहु उत्तसइ । अच्छरिउ रूवु निहि कुसुमसम तुह दंसणु जं अहिलसइ । कुंकुमेन यथा-- जइक लकइ दीहनयणि खलु केयणिइ कुसुमदलम्मि भसल विलसइ तजणु जयती एसुहि हावि मंदुहासउं । चडइ ता जणु हारय पउमराय संचउ ज्झडइ जइ तीए महुरमिउभासिणिहि वयणु गुंफु निसुणिज्जइ ।। ता वह करिप्पि जणुअमयरसुकणपण्णपडिपिज्जइ ।। वस्तु वदनकरा सा बलयसंकीर्णस्य कर्पूरेण यथा-- अविहड अपरोप्पर प्परूढगुण गंठिनिबद्धउ अझ्यारिणि हलि गलिइ पिम्म । सरलिमवसलद्धउ माणमडप्परु तुह न कुत् उत्तमरमणि तिलणिवारेउगमणि । अह करहि कलहु वल्लहिण सउं इच्छियमयच्छि न पणयम हुँ । माणिक्किमणसिणि वारिधवल हेल्लि रिवल्लि ता जउ तुह ।। कुंकुमेन यथा-- पंडिगंडयलपुलयपयरपयडण बद्धायर कंचि वाला वाला विलास बहुलिमगणनायरु। दविडदिव्वचंपयचयपरिमलल्हसडउं कुंतलि कुंतलउं दप्प झडप्पण लंपडउ। मरहद्रमाणनिद्धा हवय विहवविहंसण सक्कउ कसु करइ न मणि हल्लो हलउ मलयानिलहप्पुलक्कउ ।। रासावलयवस्तुचंदनसंकीर्णकस्य कर्पूरेण यथा-- तरुणि गंडप्पहु पुछिय तिमिरमसि। उक्कज्झलक्कावडणु डुसहु मा कारउ ससि । मलयानिलु मय नयणिय कर्पूरकविलिवणु संधुक्कियमयणग्गि सहि इमा। मलयानिलु मयनयणिधु णिय कर्पूरकविणि लिवणु संधुक्किय मयणग्गि सहि इमा। तुज्झ तवउ तणु तणुअंगिमरकडहहि पडहि तुज्झ मयण बाणवेयण । कलहभयमणु माणिवल्लहिण सहुं चडिस सजीवसंसय तुलहा । कुंकुमेन यथा-- सवणनिहिअहीरय हसंत कुंडलजुयलथूलामलमुत्तावलिमंडियथणकमला। सेयं सुयपंतुरण वहलसिरिहंडरसुज्जल वहुपहुल्लविअइल्लफुल्ल फुल्लानि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001586
Book TitleKavyakalpalatavrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj, R S Betai, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size25 MB
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