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काव्यकल्पलतावृत्तिः
सन्धा क्षुधा मेधा गोधा सुधा अभिधा द्विधा राधा अचिंधा । अग्रे--धाना धान्य धातु धार आधार । उदधि व्याधि आधि अवधि निधि सन्धि विधि । अग्रे--अधिप अधिपति अधिभू अधिकृती अधिरोहिणी । सुधी । अग्रे-धी धीर धीवर अधीश । सिन्धु अन्धु सीधु साधु विधु । अग्रे-धुनी धुर्य धुरीण । वधू । अग्रे-धूप धूः धूलि धूसर धूमयोनि । अध्व रन्ध्र साध्य । अग्रे--ध्वान्त ध्वान ध्वाङक्ष ध्वनि अध्व अधि अध्यक्ष ध्वाङक्षाराति ।
घन धन जिन गान दिन ध्वान वन दान जन पीन हीन दान स्नान यान अञ्जन मीन फेन भुग्न मान उन्न सन्न स्तन अनः धनुः मनः एन: ग्रथन कर्तन कल्पन समान आसन्न पाठीन तुहिन अजिन वामन जीवन मोहन दर्शन रदन आलिङगन मण्डन नयन आनन सूदन प्रस्थान वाहन स्यन्दन उपायन स्पर्शन अपान शालीन क्रोधन सज्जन कोपन जनन अनून आसन उल्लोचन आयतन ईशान मदन प्राचीन मज्जन छदन दशन आलीजन जघन खञ्ज-जन मन्थन बन्धन भवन मोहन अनवधान प्रतिमान नरवाहन वातायन वेत्रासन अध्वनीन अभिवादन सिंहासन व्यापादन आच्छादन सारसन निभालन । अग्रे-नभ नग नर नल नख नक नदी नद नत नव नव्य नेत्र नेपथ्य एन: नौ नर्मदा नक्षत्र नखर आनन नगर नरदेव नवनीत ।
अवधान ध्यान धाना अङगना मेना वासना देशना यातना रसना प्रार्थना घटना वर्णना पूतना । अग्रे--नागनाश नाशानारी नाम नाद नाना नाहल नारद आनाय नासिका नाविका ।
मनि ध्वनि अवनि खनि खानि अटनि योनि धृमयोनि। अग्रे--निशा निधि अनिश निभ निःस्व नित्य निर्वेद निहित नितान्त निबद्ध निखिल निश्चित निकार निरस्त निचित निवह निकाय निधन निकर निरय निदान निध्यान ।
अनिमिष निखात निदाघ नियति निकुञ्ज निगड निलय निश्रेणि निकेतन निवसन निभालन निरवग्रह।
धनी जननी बनी जनी कठिनी कामिनी भामिनी सेनानी वद्धिनी दामिनी भवानी मानिनी वाहिनी । अग्रे-- नीर नीवी नीली नीप नीव निध्र अनीक नीहार नीवार । म. टी. नन्दिप्रमुखाणामग्रे दिनाद्या योज्याः । तत्र नन्दिः द्वादशतूर्यनिर्घोषः, सादी अश्ववारः, मांसादिः मांसभक्षकः, हीनवादी तुच्छवाक्, दिति: दैत्यमाता।
तथा वेदी प्रमुखाणामग्रे दीनाद्या योज्याः । तथा बिन्दुकन्द्वादीनामग्रे दुली प्रमुखा योज्याः । तत्र बिन्दुर्वारिकणः, निन्दुश्यत्प्रसूतिकादुली कच्छपी, दुदिनं मेघवमः ।
तथा अंदू अग्रे दूराद्या योज्याः । तत्र दूरमणी दुष्टा रमणी । तथा रुद्रादीनामग्रे द्वारयतिद्रव्याद्या योज्याः । तत्र दद्रुः रोगविशेषः, द्राद्र इति प्रसिद्धिः (द्धः) । तथा बधादीनामग्रे अन्धः धनाद्या योज्याः। तत्र न्यग्रोधः वटवक्षः, अवरोधः अन्तःपुरं, ऊधः दुग्धस्थानं, ऊधस्थं क्षीरम् । तथा सन्धादीनामग्रे धानाद्या योज्याः । नत्र संधा प्रतिज्ञा, गोधा गोह इति प्रसिद्धा।
तथा उदध्यादीनामग्रे अधियप्रमुखा योज्या: । तत्र अभिधाशब्दव्यापारो नाम च । व्याधिः शारीरी पीडा, आधिर्मानसी पीड़ा, अवधिर्मर्यादा ज्ञानविशेषश्च, अधिपो नपः, अधिभः स्वामिवाचकः, अधिरोहिगी निश्रेणिः । तथा सुधी अग्रे धीराद्या योज्याः ।
___ तथा अन्धप्रमुखाणामने धुनीप्रमुखा योज्याः । तत्र अन्धुः कूपः, सिन्धुः समुद्रः, सीधु मद्यं, साधुः सज्जनो मुनिश्च धुनी नदी।
तथा वधू अग्रे धूपाद्या योज्याः । तत्र धूमयोनिर्मेधः ।
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