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गाहारयणकोसो महणारंभे मंदररवेण तह कह वि भामिया लच्छी । जेण जुअंतरपत्ता न तहा वि थिरत्तणं लहइ ॥७७५॥ तं नत्थि जं न कीरइ कणय[१५]लोहेण एत्थ लोयम्मि । सूरो विहु अत्थमणे रहेण बुड्डो समुद्दम्मि ॥७७६॥ गुणसंगेण वि गुरुआ जयम्मि सव्वत्थ होति गारविया । ठाणब्भर्ट घटुं वंदिज्जइ चंदणं, उयह ॥७७७॥ चडइ नमंताण गुणो आरूढगुणाणे होइ टंकारो । जह चावाण नराण व गुणटंकारो, न थद्धाण ॥७७८॥ पहरद्धं पि न तवियं रवि-ससिविरमे सणिच्छर-बुहे हिं । पायडवंसेहिं व निप्फरेहिं किं कीरइ सुएहिं ? ॥७७९॥ सव्वायरेण रक्खह तं पुरिसं जत्थ जयसिरी वसइ ।। अत्थमियम्मि मियंके तारेहिं न कीरए जोन्हा ॥७८०॥ सेसेण सिरं दिन्नं, पिट्ठी कुम्मेण भुवणभारस्स । कज्जारंभे सरिसे वि अंतरं होइ गरुआण ॥७८१॥ मित्तं पयस्स सलिलेण सच्छहं जं न होइ किं तेण ? । बिउणेइ मिलिज्जतं आवट्टइ आवईपढमं(?डियं) ॥७८२॥ तं मित्तं कायव्वं जं मित्तं वसणपत्तकालम्मि । ... आलिहियभित्तिवाउल्लयं व न परम्मुहं ठाइ ॥७८३॥ . . धम्मे लेग्गा इह मग्गणा वि पावंति उत्तमं ठाणं । गुणसंगिणो फुरंता गयणंगणगामिणो हुंति ॥७८४॥ तिक्खो वि खरो वि सलोहओ वि परपीडगो वि लहुओ वि । लग्गो धम्मम्मि नरो सरो व्व गरुकं गुणं लहइ ॥७८५॥ लीलाए कुवलयं कुवलयं व सीसे समुन्वहंतेण । सेसेण सेसपुरिसाण पुरिसयारो वि पम्हुट्ठो ॥७८६॥ पूयफले हिं चिय केवले हिं पयडो न होइ मुहराओ। जाव न होइ सहाया निच्चं सच्चून्नया पत्ता ॥७८७॥ .. हारो खित्तो महिमंडलम्मि तरुणीए रइसमारंभे । अवसररहिया गुणिणो(गुणवंतया)वि दूरे धरिजंति ॥७८८॥ १ लग्गइ इह प्रतौ ॥
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