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[ द्वि० प० कारिका २५
ननु' च प्रतिभाससमानाधिकरणत्वाद्धेतोः सर्वस्य प्रतिभासान्तः प्रविष्टत्वेन पुरुषाद्वैत सिद्धावपि न हेतुसाध्ययोद्वैतं भविष्यति, तादात्म्योपगमात् । न च तादात्म्ये साध्यसाधनयोस्तद्भावविरोधः, सत्त्वानित्यत्वयोरपि तथाभावविरोधानुषङ्गात् । कल्पनाभेदादिह साध्यसाधनधर्मभेदे' प्रकृतानुमानेपि कथमविद्योदयोपकल्पित हेतुसाध्ययोस्तद्भावविघातः, सर्वथा ' विशेषाभावादिति चेन्न, शब्दादौ सत्त्वानित्यत्वयोरपि कथंचित्तादात्म्यात् सर्वथा तादात्म्यासिद्धेः, 'तत्सिद्धी साध्यसाधनभावविरोधात् । न " चासिद्धमुदाहरणं नाम, अतिप्रसङ्गात् । " ततो न 12 हेतोरद्वैत सिद्धिः ।
अष्टसहस्र
अद्वैतवादी -"प्रतिभास समानाधिकरणत्व" हेतु से सभी वस्तु को प्रतिभास के अंतः प्रविष्ट रूप मान लेने से पुरुषाद्वैत की सिद्धि के होने पर भी हेतु और साध्य में द्वैत नहीं होगा । क्योंकि इन हेतु और साध्य में तादात्म्य स्वीकार किया है । साध्य साधन में तादात्म्य के मानने पर उनमें साध्यसाधन भावरूप तद्भाव विरोध भी नहीं है । अन्यथा - सत्त्व और अनित्य में भी साध्य साधनभाव का विरोध आ जायेगा । यथा - " शब्दो नित्यः सत्त्वात्" इन हेतु और साध्य में भी विरोध आ जायेगा । यदि आप ऐसा कहें कि यहाँ कल्पना के भेद से ही साध्य-साधन धर्म में भेद है तब तो प्रकृत अनुमान में भी अविद्या के उदय से उपकल्पित हेतु और साध्य में उस साध्य साधन भावरूप तद्भाव का व्याघात कैसे होगा ? क्योंकि दोनों में सर्वथा विशेषता का अभाव है ।
जैन - ऐसा नहीं कह सकते । शब्दादि में सत्त्व और अनित्य इन दोनों का भी कथंचित् ( एक धर्मी की अपेक्षा से) तादात्म्य संबंध है, सर्वथा तादात्म्य की सिद्धि नहीं है । यदि सर्वथा तादात्म्य की सिद्धि मानों तब तो साध्य - साधनभाव का विरोध हो जायेगा । यहाँ उदाहरण भी असिद्ध नहीं है । यथा "प्रतिभासस्वरूपम् " यह भी कथंचित् तादात्म्यरूप से ही है न कि सर्वथा । अन्यथा - अतिप्रसंग दोष आ जायेगा अर्थात् अन्वय दृष्टांत को वाच्य करने पर व्यतिरेक दृष्टांत वाच्य हो जायेगा पुनः अन्वय में व्यतिरेक दृष्टांत उदाहरणरूप हो जायेगा, परन्तु ऐसा नहीं है इसीलिये हेतु से अद्वैत की सिद्धि नहीं हो सकती है ।
1 अद्वैतानुमाने । दि० प्र० । 2 सकाशात् । ब्या० प्र० । 3 सौगतमतेपि वस्तुनो निरंशत्वात् सत्त्वानित्यत्वयोस्तादात्म्यमभ्युपगम्यत एव । दि० प्र० । 4 अनुमाने । दि० प्र० 15 अद्वैतसाधकानुमाने । दि० प्र० । 6 उभयत्र शब्दानित्यत्वसाधने ब्रह्माद्वैतसाधने च सर्वप्रकारेण विशेषो नास्ति । दि० प्र० । 7 साक्षसत्त्वानित्यत्वे कथञ्चित्तादात्म्ये प्रतीयेते । दि० प्र० । 8 साध्यसाधनयो: सर्वथा तादात्म्यं न सिद्धयति । अन्यथा । दि० प्र० । 9 वास्तव इति पा० । दि० प्र० । 10 शब्दो सत्त्वानित्यत्वयोरपि कथञ्चित्तादात्म्यादित्युदाहरणमसिद्धं नास्ति । असिद्धमस्ति चेत्तदातिप्रसंगो जायते । दि० प्र० । 11 हेतुसाध्ययोद्वैतं यतः । दि० प्र० । 12 सकाशात् । दि० प्र० ।
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