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ब्रह्माद्वैतवाद का खण्डन ]
तृतीय भाग [ क्रियाकारकादिभेदो न स्वतो जायते न परतः, किन्तु जायत एवेति मन्यमाने दोषान् प्रदर्शयन्त्याचार्याः । ]
क्रियाकारकभेदोयं न स्वतो जायते परतो वा । अपि तु जायते एवेति सुषुप्तायते, प्रतिपत्त्युपायाभावात्', दृष्टेष्टविरोधप्रसङ्गात् । न हि किंचित्स्वस्मात् परस्माच्चाजायमानं जन्मवदेव दृष्टमिष्टं वा, येन तथा प्रतिपत्त्युपायरहितं ब्रुवाणः सुषुप्तमिवात्मानं नाचरेत् । 'तस्माद्यदृष्टविरुद्धं तन्न समञ्जसं यथा नैरात्म्यम् । विरुध्यते च तथैवाद्वैतं क्रियाकारकभेदप्रत्यक्षादिभिः । एकस्मिन्नपि क्रियाकारकभेदप्रत्यक्षादे: संभवात् स्वप्नसंवेदनवत् कथमद्वैतं विरुद्धमिति चेन्न, स्वप्नसंवेदनस्याप्येकत्वे तद्विरोधस्य तदवस्थत्वात् । तत्रान्यदेव हि क्रियाविशेषसंवेदनं स्ववासनोत्थमन्यदेव च कारकविशेषसंवेदनं प्रत्यक्षमनुमानादि' वा न
[ क्रियाकारक आदि भेद न स्वत: से होते हैं न पर से, किंतु होते अवश्य हैं ऐसा कहने पर
आचार्य दोष दिखलाते हैं । ] अद्वैतवादी-यह क्रियाकारक भेद "न स्वतः उत्पन्न होता है । अपितु उत्पन्न अवश्य होता है।"
जैन-यदि ऐसी बात है तब तो ऐसा मालूम होता है कि आप अद्वैतवादी प्रगाढ़ निद्रा में सो रहे हैं क्योंकि आपके पास जानने के उपायों का ही अभाव है ।
इस मान्यता में तो प्रत्यक्ष और अनुमान से विरोध का प्रसंग आता है। क्योंकि कोई भी स्वतः से और पर से उत्पन्न न होते हुये भो जन्मवान् ही हो ऐसा तो न किसी ने प्रत्यक्ष से देखा ही है अथवा न किसी ने अनुमान ज्ञान से ही जाना है। अर्थात् ऐसा कोई प्रत्यक्ष या अनुमान से सिद्ध नहीं है जिससे कि "अपितु-उत्पन्न होता ही है" इस प्रकार से प्रतिपत्ति जानने के उपाय से रहित को कहते हुये अपनी आत्मा को सोते हुये के समान न आचरण करावें न सिद्ध करें अर्थात् आप सोते हुये के समान ही मालूम पड़ते हैं।
"इसलिये जो प्रत्यक्ष से विरुद्ध है वह समंजस नहीं है। जैसे नैरात्म्यवाद और उसी प्रकार से क्रियाकारक आदि में भेद को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के द्वारा आपका अद्वैत विरुद्ध
1 प्रतिपादनस्य निश्चयस्य वा उपायासंभवात् अद्वैतवादी अतिसुप्तमिवात्मानमाचरति । दि० प्र० । 2 लोके स्वस्मात्स्वस्योत्पत्तिर्नास्ति । परस्मादुत्पत्तिश्चेद् द्वैतापत्तिः । ब्या० प्र०। 3 कुतः । दि० प्र०। 4 क्रियाकारकभेदी द्वैते न घटते यस्मात् । ब्या० प्र०। 5 अद्वतं पक्ष: समंजसं न भवतीति साध्यो धर्मः क्रियाकारकभेदप्रत्यक्षादिभिः विरुद्धत्वात् यत्क्रियाकारकभेदप्रत्यक्षादिभिविरुद्धं तन्नसमञ्जसं यथा नैरात्म्यं दृष्टविरुद्धं चेदं तस्मान्न समंजसम् । दि० प्र०। 6 अद्वैते । ब्या० प्र० । 7 भेदस्य ग्राहको यस्तस्य । ब्या०प्र०। 8 पूर्वसंस्कारजातम् । दि. प्र०19 अन्यदेव । दि. प्र. ।
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