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________________ Jain Education International दिल्ली ग्रंथ भण्डार से हस्तलिखित प्राचीन अष्टसहस्री के एक पृष्ठ का नमना (जिससे इस ग्रंथ में टिप्पण व पाठांतर संग्रहीत किये गये हैं) १०८ २.सरयाद पर्यायापेक्षया - १६व्यम्पतया- ९आत्मशदावमुत्रमवसंवग्यतेनविशेषात्मनएकात्म नश्चति योजनाकतव्या-विधानवादी-सौगतः पतनियतातकमव: सानद स्वनावातमा जय-परिविधिलमपण. विमति ६. 5. For Private & Personal Use Only का धर्मग्पनि। यतेंचित्रज्ञातवकांविदसकीदिशाषकात्मनःसुवादितित्यस्या वर्मसंस्थानाद्यात्मनःस्कंधस्पचपेरणतिस्पान्मतसुरवादिवितन्याममें की विशेषात्मकवनपुतरेकात्ममुग्व चेतगादालादनाका रामयबोधताकारविज्ञानस्यात्पबोधिसत्धानाध्यासस्यानपत्र साधतवादयघाविश्वस्पेकवपसंगादितितदसछित्रज्ञातस्यापकार सरन्यादिज्ञानस्य तमकवातावपसातवीताकारसावदतस्पनीलाशकारसावदतादत्य बाहिरुध्धार्माध्यासात्यदिपुनस्वावविश्ववनत्वात्पीताद्याका अतिन्नरूपन्नाव रसंवेदनामकात्मकमुरीक्रियतेनदासुरवादिचतन्येनकापराधा सुरवादिवैतन्यस्य. a तलस्पाप्पाकविवेचनत्वादकात्मकत्वापाने पीताद्याकागानि वमुखाद्याकागणावतगतरनेवाशक्यविवेवस्वस्पसझावातही २६ नाम्प सुरवधु वा कारागा सज्ञानसंतान प्रतित्रापसिउटयक्रमशक्यत्वात् । सौगताः प्रगत्वमिव: www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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