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पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी कृत हिन्दी टीका
का एक पृष्ठ नमूनार्थ
नाची न..
अ. पृ. २७५
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- जैन - एता नहीं चला, मनानादि से भी मानी गई यस्त में (पदार्थ का एक ही स्वभाव है ' ऐसा उत्तर देना बिरूद नहीं है क्योनि प्रत्यक्ष के समार अनुभानादि को भी हमारे प्रमाणभूत माल है । उसलिये प्रमाण सिर पर माराम से सत्य एवं अभव्यरूप प्रकृत में आये ये जीवन. नानाव प्रतीति का अनुसाण माते इये तर्क ले विषय नहीं है कि जिससे उनमें प्रश्न उठाया जा सके अर्थात स्वभाव में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। अन्यथा तर्क के विषय भूत पदाधे में 4 आगम के विषयरूप से प्रश्न उठाने का प्रसंग आ जायेगा और . उसी प्रकार से प्रत्यय के विषयभूत पदार्थों में भी प्रश्न उठते ही रहेंगे अर्धात मह आणि उष्ण न्यों है तो यह जल ठंढा क्यों ? त्यादि । पुरः उत्त प्रयास से तो प्रत्यक्ष और आगम स्वतंत्र प्तिा नहीं हो सग तर्क में समान |
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