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________________ ( .७० ) सभी दर्शनार्थियों के मुख से एक स्वर से यही कहते हुए सुनने में आता है कि हमें तो कल्पना भी नहीं थी कि इतनी आकर्षक जम्बूद्वीप की रचना बनी होगी। हस्तिनापुर आने वाले दर्शकों को जम्बूद्वीप रचना के साथ ही उसकी प्रेरिका पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के दर्शनों का एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का भी स्वर्णिम अवसर सहज में प्राप्त हो जाता है। पूज्य माताजी ने जम्बूद्वीप रचना की प्रेरणा तो दी ही साहित्य निर्माण के क्षेत्र में भी अद्भूत कीर्तिमान स्थापित किया। ___ अढाई हजार वर्ष में ज्ञानमती माताजी पहली महिला हैं जिन्होंने ग्रंथों की रचना की। अब से पहले से लिखे जितने भी ग्रंथ उपलब्ध होते हैं वे सब पुरुष वर्ग के द्वारा लिखे गये हैंआचार्यों ने लिखे, मुनियों ने लिखे या पडितों ने लिखे । किसी श्राविका अथवा आर्यिका द्वारा लिखा एक भी ग्रंथ कहीं के भी ग्रन्थ भण्डार में देखने में नहीं आया। पू० ज्ञानमती माताजी ने त्याग और संयम को धारण करते हुए एक दो नहीं डेढ़ सौ छोटे बड़े ग्रन्थों का निर्माण किया। न्याय, व्याकरण, सिद्धान्त, अध्यात्म आदि विविध विषयों के ग्रन्थों की टीका आदि की। भक्तिपरक पूजाओं के निर्माण में उल्लेखनीय कार्य किया है । इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, सर्वतोभद्र विधान, जम्बूद्वीप विधान जैसी अनुपम कृतियों का सृजन किया। सभी वर्ग के व्यक्तियों को दृष्टि में रखकर माताजी ने विभिन्न रुचि के साहित्य की रचनायें की। प्राचीन धार्मिक कथाओं को उपन्यास की शैली में लिखा। अब तक माताजी की एक सौ दस कृतियों का प्रकाशन विभिन्न भाषाओं में पन्द्रह लाख से अधिक मात्रा में हो चुका है। पूज्य माताजी की लेखनी अभी भी अविरल गति से चल रही है। आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दि महोत्सव के इस पावन प्रसंग पर अभी-अभी समयसार की आचार्य अमृतचन्द्र एवं आचार्य जयसेन कृत टीकाओं का हिन्दी अनुवाद किया जो कि छपकर जन-जन के हाथों में पहुँच रहा है। औरभी प्रकाशन कार्य भी सतत चल रहा है। __माताजी द्वारा लिखा हुआ साहित्य ऐसा लोकप्रिय है कि प्रकाशित होने के कुछ ही समय पश्चात् ही अप्राप्य हो जाता है। ऐसे दान तीर्थ हस्तिनापुर क्षेत्र का दर्शन महान पुण्य फल को देने वाला है यह तीर्थ क्षेत्र युगों-युगों तक पृथ्वी तल पर धर्म की वर्षा करता रहे यही मंगल भावना है। पूज्य माताजी शतायु होकर जिनधर्म की महान् प्रभावना करती रहें यही भगवान् जिनेन्द्र से प्रार्थना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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