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________________ ही मन्दिर है शिला हटाकर दर्शन करो। उठकर संकेत के अनुसार शिला हटाते ही भगवान के दर्शन हुए । वहीं पर चढ़ाने के लिये गजमोती मिल गये । दर्शन करके भोजन किया। आगे चलकर पुण्य योग से बुधसेन राजा के जमाई बन गये। इधर वे छहों भाई अत्यंत दरिद्र अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं। गांव छोड़कर कार्य की तलाश में घूमते-घूमते छहों भाई, उनकी पत्नियां व माता पिता सभी वहाँ पहुँचते हैं जहाँ बुधसेन जिन मंदिर का निर्माण करा रहे थे। लोगों ने उन्हें बताया कि आप बुधसेन के वहां जाओ, आपको वे काम पर लगा लेंगे । वे सभी वहां पहुँचे, उनको काम पर लगाया, बुधसेन मनोवती उन्हें पहिचान गये, अन्त में सबका मिलन हुआ। सभी भाइयों, भौजाइयों तथा माता-पिता ने क्षमा याचना की। धर्म की जय हुई। इस घटना से यही शिक्षा मिलती है कि आपस में सबको मिलकर रहना चाहिये । न मालूम किसके पुण्य योग से घर में सुख शांति समृद्धि होती है। सुलोचना जयकुमार यहाँ के राजा श्रेयांस के भाई महाराजा सोम के पुत्र जयकुमार भरत चक्रवर्ती के प्रधान सेनापति हुए। उनकी धर्म परायणा शीलशिरोमणी पत्नी सुलोचना की भक्ति के कारण गंगा नदी के मध्य आया हुआ उपसर्गर दूर हुआ। रोहिणी व्रत की कथा का घटना स्थल भी यही हस्तिनापुर तीर्थ है । अनेक घटनाओं कीशृंखला के क्रम में एक और मजबूत कड़ी के रूप में जुड़ गई जम्बूद्वीप की रचना । इस रचना ने विस्मृत हस्तिनापुर को पुनः संसार के स्मृति पटल पर अंकित कर दिया। न केवल भारत के कोने कोने में अपितु विश्व भर में जम्बूद्वीप रचना के दर्शन की चर्चा रहती है । जैन जगत में ही नहीं प्रत्युत वर्तमान दुनियां में पहलो बार हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना का विशाल खुले मैदान पर भव्य निर्माण हुआ है जो कि पूज्य गणिनो आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतो माताजी के ज्ञान व उनकी प्रेरणा का प्रतिफल है। जम्बूद्वीप की रचना सन् १६६५ में श्रवणबेलगोल स्थित भगवान बाहुबली के चरणों में ध्यान करते हुए पू० ज्ञानमती माताजी को जिस रचना के दिव्य दर्शन हुये थे । बीस वर्ष के पश्चात् यहां हस्तिनापुर में आकर उसे साकार रूप प्राप्त हुआ। वर्तमान में जम्बूद्वीप रचना दर्शन के निमित्त से ही सन् १६७६ से अब तक लाखों जैन जैनेतर दर्शनार्थियों को हस्तिनापुर आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रतिदिन आने वाले दर्शनार्थियों में अधिकतम ऐसे होते हैं जो कि यहाँ पहली बार आने वाले होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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