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________________ यह समाचार सुनकर परम करुणामूर्ति विष्णुकुमार मुनिराज के मन में साधर्मी मुनियों के प्रति तीव्र वात्सल्यं की भावना जागृत हुई। तपस्या से उन्हें विक्रिया ऋद्धि उत्पन्न हो गई थी। वे वात्सल्य भावना से ओतप्रोत होकर उज्जयनी से चातुर्मास काल में हस्तिनापुर आते हैं। अपनी पूर्व अवस्था के भाई-यहां के राजा पद्म को डांटते हैं । राजा उनसे निवेदन करते हैं-हे मुनिराज ! आप ही इस उपसर्ग को दूर करने में समर्थ हैं । तब मुनि विष्णुकुमार ने वामन का वेष बनाकर बलि से अढ़ाई पैर जमीन दान में मांगी। बलि ने देने का संकल्प किया। मुनिराज ने विक्रिया ऋद्धि से विशाल शरीर बनाकर दो कदम में सारा अढाईद्वीप नाप लिया, तीसरा पैर रखने की जगह नहीं मिली। चारों तरफ त्राहित्राहि होने लगी। रक्षा करो, क्षमा करो कि ध्वनि गूंजने लगी । बलि ने भी क्षमा मांगी। मुनिराज तो क्षमा के भंडार ही होते हैं। उन्होंने बलि को क्षमा प्रदान की। उपसर्ग दूर होने पर विष्णुकुमार ने पुनः दीक्षा धारण की। सभी श्रावकों ने मिलकर विष्णुकुमार की बहुत भारी पूजा की। अगले दिन श्रावकों ने भक्ति से मुनियों को खीर-सिंवई का आहार दिया और आपस में एक दूसरे को रक्षा सूत्र बाँधे । यह निश्चय किया कि विष्णुकुमार मुनिराज की तरह वात्सल्य भावना पूर्वक धर्म एवं धर्मायतनों की रक्षा करेंगे । तभी से वह दिन प्रतिवर्ष रक्षा बंधन पर्व के रूप में श्रावण सुदी पूर्णिमा को मनाया जाने लगा । इस दिन बहनें भाइयों के हाथ में राखी बाँधतो हैं । दर्शन प्रतिज्ञा में प्रसिद्ध मनोवती गजमोती चढ़ाकर भगवान के दर्शन कर भोजन करने का अटल नियम निभानेवाली इतिहास प्रसिद्ध महिला मनोवती भी इसी हस्तिनापुर की थी। यह नियम उसने विवाह के पूर्व लिया था। विवाह के पश्चात जब ससुराल गई तो वहाँ सकोच वश कह नहीं पाई । तीन दिन तक उपवास हो गया। जब उसके पीहर में सूचना पहुँची तो भाई आया, उसे एकांत में मनोवती ने सब बात बता दी। उसके भाई ने मनोवती के स्वसुर को बताया। तो उसके स्वसुर ने कहा कि हमारे यहाँ तो गजमोती का कोठार भरा है। तभी मनोवती ने गजमोती चढ़ाकर भगवान के दर्शन करके भोजन किया। ___ इसके बाद मनोवती को तो उसका भाई अपने घर लिवा ले गया। इधर उन मोतियों को चढ़ाने से इस परिवार पर राजकीय आपत्ति आ गई जिसके कारण मनोवती के पति बुधसेन के छहों भाइयों ने मिलकर उन दोनों को घर से निकाल दिया । घर से निकलने के बाद मनोवती ने तब तक भोजन नहीं किया जब तक गजमोती चढ़ाकर भगवान के दर्शनों का लाभ नहीं मिला । जब चलते चलते थक गये तो रास्ते में सो गये। पिछली रात्रि में उन्हें स्वप्न होता है कि तुम्हारे निकट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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