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भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ ने महान् तपश्चर्या करके दिव्य केवलज्ञान की प्राप्ति की । उनकी ज्ञानज्योति के प्रकाश से अनेकों भव्य जीवों का मोक्षमार्ग प्रशस्त हुआ । अन्त में उन्होंने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया। आज हजारों लोग उन तीर्थंकरों की चरणरज से पवित्र इस पुण्य धरा की वन्दना करने आते हैं । उस पुनीत माटी को मस्तक पर चढ़ाने के लिए आते हैं।
कौरव पांडव की राजधानी
महाभारत की विश्वविख्यात घटना भगवान नेमीनाथ के समय में यहाँ घटित हुई । यह वही हस्तिनापुर है जहाँ कौरव पांडव ने राज्य किया। सौ कौरव भी पांच पांडवों को हरा नहीं सके । क्या कारण था ? कौरव अनीतिवान थे, अन्यायी थे, अत्याचारी थे, ईर्ष्यालु थे, द्वेषी थे । उनमें अभिमान बाल्यकाल से कूट-कूट कर भरा हुआ था। पांडव प्रारंभ से धीर-वीर-गंभीर थे, सत्य आचरण करने वाले थे, न्यायनीति से चलते थे, सहिष्णु थे । इसीलिये पांडवों ने विजय प्राप्त की । यहां तक कि पांडव भी सती सीता की तरह अग्नि परीक्षा में सफल हुए । कौरवों के द्वारा बनाये गये जलते हुये लाक्षागृह से भी णमोकार महामंत्र का स्मरण करते हुए एक सुरंग के रास्ते से बच निकले ।
वे एक बार पुनः अग्नि परीक्षा में सफल हुए। जब गजपंथा में नग्न दिगम्बर मुनि अवस्था में ध्यान में लीन थे उस समय दुर्योधन के भानजे कुर्युधर ने लोहे के आभूषण बनवाकर गरम करके पहना दिये। जिसके फलस्वरूप बाहर से उनका शरीर जल रहा था और भीतर से कर्म जल रहे थे । उसी समय सम्पूर्ण कर्म जलकर भस्म हो गये और अंतकृत केवली बनकर तीन पांडवों ने निर्वाण प्राप्त किया और नकुल, सहदेव उपशम श्रेणी का आरोहण करके ग्यारवें गुणस्थान में मरण को प्राप्त करके स्वर्ग गये ।
कौरव पांडव तो आज भी घर-घर में देखने को मिलते हैं । यदि विजय प्राप्त करना है तो पांडवों के मार्ग का अनुसरण करना चाहिये । सदैव न्याय-नीति से चलना चाहिये । तभी पांडवों की तरह यश की प्राप्ति होगी। धर्म को सदा जय होती है ।
रक्षाबंधन पर्व - एक समय हस्तिनापुर में अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों का संघ आया हुआ था । उस समय यहाँ महापद्म् चक्रवर्ती के पुत्र राजा पद्म राज्य करते थे । कारणवश बली मंत्री ने वरदान के रूप में सात दिन का राज्य मांग लिया । राज्य लेकर बलि ने अपने पूर्व अपमान का बदला लेने के लिये जहां सात सौ मुनि विराजमान थे वहां उनके चारों ओर यज्ञ के बहाने अग्नि प्रज्वलित कर दी । उपसर्ग समझकर सभी मुनिराज शांत परिणाम से ध्यान में लीन हो गये ।
दूसरी तरफ उज्जयनी में विराजमान विष्णुकुमार मुनिराज को मिथिला नगरी में चातुर्मास कर रहे मुनि श्री श्रुतसागर जी के द्वारा भेजे गये क्षुल्लक श्री पुष्पदंत से सूचना प्राप्त हुई कि हस्तिनापुर में मुनियों पर घोर उपसर्ग हो रहा है और उसे आप ही दूर कर सकते हैं ।
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