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________________ ( ६६ ) शास्त्रों का प्रकाशन, मुनिसंघों का विहार दान से ही सम्भव है । और यह दान श्रावकों के द्वारा ही होता है | श्रवणबेलगोल में एक हजार साल से खड़ी भगवान् बाहुबली की विशाल प्रतिमा भी चामुण्डराय के दान का ही प्रतिफल है जो कि असंख्य भव्य जीवों को दिगम्बरत्व का, आत्मशान्ति का पावन संदेश बिना बोले ही दे रही है । यहाँ बनी यह जम्बूद्वीप की रचना भी सम्पूर्ण भारतवर्ष के लाखों नर-नारियों के द्वारा उदार भावों से प्रदत्त दान के कारण ही मात्र दस वर्ष में बनकर तैयार हो गई जो कि सम्पूर्ण संसार के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई है । जम्बूद्वीप की रचना सारी दुनिया में अभी केवल यहाँ हस्तिनापुर में ही देखने को मिल सकती है । नंदीश्वर द्वीप की रचना, समवसरण की रचना तो अनेक स्थलों पर बनी है और बन रही है । यह हमारा व आप सबका परम सौभाग्य है कि हमारे जीवन काल में ऐसी भव्य रचना बनकर तैयार हो गई और उसके दर्शनों का लाभ सभी को प्राप्त हो रहा है । भगवान् आदिनाथ के प्रथम आहार के उपलक्ष में वह तिथि पर्व के रूप में मनाई जाने लगी। वह दिन इतना महान् हो गया कि कोई भी शुभ कार्य उस दिन बिना किसी ज्योतिषी से पूछे कर लिया जाता है । जितने विवाह अक्षय तृतीया के दिन होते हैं उतने शायद ही अन्य किसी दिन होते हों । और तो और ! जबसे भगवान् का प्रथम आहार इक्षुरस का हुआ तबसे इस क्षेत्र में गन्ना भी अक्षय हो गया । जिधर देखो उधर गन्ना ही गन्ना नजर आता है, सड़क पर गाड़ी में आते-जाते बिना खाये मुंह मीठा हो जाता है, कदम-कदम पर गुड़-शक्कर बनता दिखाई देता है । हस्तिनापुर में आने वाले प्रत्येक यात्री को जम्बूद्वीप प्रवेश द्वार पर भगवान् के आहार के प्रसाद रूप में यहां लगभग बारह महीने इक्षुरस पीने को मिलता है । भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ के चार-चार कल्याणक भगवान् आदिनाथ के पश्चात् अनेक महापुरुषों का इस पुण्य धरा पर आगमन होता रहा । भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरहनाथ के चार-चार कल्याणक यहाँ हुए हैं। तीनों तीर्थंकर चक्रवर्ती एवं कामदेव पद के धारी थे । तीनों तीर्थंकरों ने यहाँ से समस्त छह खण्ड पृथ्वी पर राज्य किया किन्तु उन्हें शान्ति की प्राप्ति नहीं हुई । छियानवे हजार रानियां भी उन्हें सुख प्रदान नहीं कर सकीं अतएव उन्होंने सम्पूर्ण आरम्भ - परिग्रह का त्यागकर नग्न दिगम्बर अवस्था धारण की, मुनि बन गये । बारह भावनाओं में पढ़ते हैं ― कोटि अठारह घोड़े छोड़े चौरासी लख हाथी । इत्यादिक सम्पत्ति बहुतेरी जीरण तृण सम त्यागी ॥ छियानवे हजार रानियों को एवं अपार सम्पदा को क्षण भर में जीर्ण तृण के समान त्याग दिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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