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________________ नय का लक्षण ] तृतीय भाग [ ५७७ वचनात् । 'तमु नेकमेवास्तु तादात्म्यविरोधादनेकस्थस्येत्यपि न शङ्कितव्यं, कथंचित्तादात्म्यस्याशक्यविवेचनत्वलक्षणस्याविरोधात्तथाप्रतीतेः । केवलं ततस्तेषामपोद्धाराद्गुणगुण्यादिवत्' 'तदनेकधा । ततः सूक्तं, त्रिकालवर्तिनयोपनयविषयपर्यायविशेषसमूहो द्रव्यमेकानेकात्मकं जात्यन्तरं वस्त्विति । अत्र परारेकामुपदर्श्य परिहरन्तः सूरयः प्राहुः, शंका-उन एकांतों का समुच्चय क्या है ? समाधान-वह समुच्चय कथंचित् अविभ्राइ भाव सम्बन्ध है अर्थात् कथंचित् अपृथक् स्वभाव सम्बन्ध ही समुच्चय है। ऐसा जैनाचार्यों का कहना है क्योंकि उससे भिन्न अन्य कोई संयोगादि समुच्चय उन द्रव्य पर्याय विशेषों में नहीं माना है । अर्थात् द्रव्य दृष्टि से जो वस्तु एक है वही पर्याय की अपेक्षा से अनेक है ऐसा सिद्ध है। __ शंका-द्रव्य एक ही है क्योंकि नय और उपनय रूप से एकांत पर्यायों का उसमें तादात्म्यअभेद है। समाधान-ऐसी शंका करना ठीक नहीं है। क्योंकि वे नय उपनय रूप एकांत पर्याय उस द्रव्य से कथंचित् भिन्न हैं अतः उस द्रव्य में अनेकत्व है, ऐसा कथन है । शंका-तब तो अनेक ही हो जावें अर्थात् अनेक पर्यायों को ही मानना चाहिये, क्योंकि उन अनेकों में रहने वाली पर्यायों का द्रव्य से तादात्म्य मानना विरुद्ध है। समाधान-ऐसी आशंका भी गलत है। क्योंकि अशक्य लक्षण विवेचन रूप कथंचित् तादात्म्य का अविरोध और एकत्र वस्तु में वैसी ही भेद-अभेद रूप प्रतीति भी आ रही है। केवल उस द्रव्य से उन पर्यायों को भेद की कल्पना से पृथक् किया जाता है। गुण, गुणी आदि के समान । अत: वे पर्यायें अनेक प्रकार की सिद्ध हो जाती हैं। इसलिये यह कथन बिल्कुल ठीक है कि त्रिकालवर्ती नयोपनय के विषयभूत पर्याय विशेषों का समूह ही द्रव्य है, वह एकानेकात्मक जात्यंतर वस्तु है । ___अब यहां दूसरों की आशंका को दिखलाकर उसका परिहार करते हुये आचार्य श्री संमतभद्रस्वामी कहते हैं 1 द्रव्य । ब्या० प्र० । 2 अनेकस्थमित्यपि न मन्तव्यम् । इति पा० । दि० प्र० । 3 द्रव्यात् । ब्या० प्र० । 4 गुणिनः सकाशाद्गुणानां यथा तथा द्रव्यात्पर्यायाः कथञ्चिद्भिन्नत्वात् तस्मात् द्रव्यमनेकधा प्रतिपादितम् । दि० प्र०। 5 द्रव्यम् । ब्या० प्र० । 6 वस्तुनि । ब्या० प्र० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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