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________________ अष्टसहस्री ५७६ ] द०प० कारिका १०७ 'नयोपनयकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । 'अविभ्राड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ॥१०७॥ [ वस्तुनो लक्षणं किमिति प्रश्ने आचार्याः उत्तरयति । ] उक्तलक्षणो द्रव्यपर्यायस्थानः संग्रहादिर्नयः तच्छाखाप्रशाखात्मोपनयः । तदेकान्तानां विपक्षोपेक्षालक्षणानां त्रिकालविषयाणां समितिव्यं वस्तु 'गुणपर्ययवद्रव्यम्' इति वचनात् । कः पुनस्तेषां समुच्चयो नामेति चेत्, 'कथंचिदविभ्राड्भावसंबन्ध इत्याचक्षते, 1 ततोन्यस्य समुच्चयस्य संयोगादेरसंभवात् 'द्रव्यपर्याय विशेषाणाम् । न चैवमेकमेव द्रव्यं नयोपनयकान्तपर्यायाणां तत्तादात्म्यादित्यारेकितव्यं, “ततस्तेषां कथंचिभेदादनेकत्वमिति उत्थानिका[ पुनः वस्तु क्या है ? ऐसा प्रश्न होने पर आवार्यश्री समंतभद्र स्वामी कहते हैं-] त्रिकालवर्ती नय उपनय के, एकांतों का जो समुदाय । अपृथक् है तादात्म्य भावयुत, वही द्रव्य है सहज स्वभाव ।। द्रव्य कहा यह एकरूप भी, और अनेकरूप भी है। अनंतधर्मा द्रव्य के इक-इक, धर्म कहे नय वो ही है ।।१०७॥ कारिकार्थ-त्रिकाल विषयक, नय और उपनयों के एकांत का जो समुच्चय है और अविभ्राड् भाव सम्बन्ध- अपृथक् स्वभाव सम्बन्ध रूप है वही द्रव्य है और वह एक भी है अनेक प्रकार का भी है ॥१०७॥ _ [ वस्तु का लक्षण क्या है ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य उत्तर देते हैं-] उक्त लक्षण द्रव्य और पर्याय के विषय करने वाले संग्रहादि नय हैं। उसकी शाखा, प्रशाखा अर्थात् भेद, प्रभेद रूप उपनय कहलाते हैं। उनके जो एकांत है जो कि विपक्ष की उपेक्षा को करके होते हैं न कि विपक्ष का सर्वथा त्याग करके । ऐसे उन त्रिकाल विषयक एकांतों का समुदाय द्रव्य है। वही वस्तु हैं। “गुणपर्ययवद् द्रव्यम् ।' गुण और पर्यायों वाला द्रव्य है, ऐसा सूत्र है। 1 प्रतिपक्षसापेक्षिणोः । ब्या ०प्र० । 2 अविष्वगभाव । इति पा० । दि० प्र० । 3 तेषां संग्रहादीनां भेप्रभेदस्वरूप । दि० प्र० । 4 प्रभेदः । ब्या० प्र० । 5 तेषां नयोपनयानां पर्यायाणामविवक्षितसापेक्षलक्षणानाम् । दि० प्र० । 6 नयोपनयविषयभूतानामेकरूपधर्माणाम् । दि० प्र०। 7 अनिराकृतिः । दि० प्र० । 8 समुच्चयः । दि० प्र० । 9 कथञ्चिद्विष्वग । इति पा० । कथञ्चित्तादात्म्यभावसम्बन्धः । दि० प्र० । 10 कथञ्चिद्विष्वक्भावसम्बन्धात् । दि० प्र०। 11 वस्त्वंशभूतोद्धतातिर्यक्सामान्यरूपद्रव्य । दि० प्र० । 12 अविष्वग्भावसम्बन्ध रूपसमुच्चयस्य द्रव्यत्वे सति । दि० प्र० । 13 द्रव्य । ब्या० प्र० । 14 ततो द्रव्यात्तेषां पर्यायाणाम् । दि० प्र० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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