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प्रमाण का स्वरूप ] तृतीय भाग
[ ५२५ इति, मणिप्रदीपप्रभादृष्टान्तोपि स्वपक्षघाती, मणिप्रदीपप्रभादर्शनस्यापि संवादकत्वेन प्रामाण्यप्राप्त्या प्रमाणान्तर्भावविघटनात् कथं प्रमाणे एवेत्यवधारणं घटते ? न हि तत्प्रत्यक्षं स्वविषये विसंवादनात् शुक्तिकादर्शनवद्र जतभ्रान्तौ । तत्राप्रतिपन्नव्यभिचारस्य यदेव मया दृष्टं तदेव मया प्राप्तमित्येकत्वाध्यवसायाद्विसंवादनाभावान्मणिप्रभायां मणिदर्शनस्य प्रत्यक्षत्वे तिमिराशुभ्रमणिनौयानसंक्षोभाद्याहितविभ्रमस्यापि धाववादितरुदर्शनस्य प्रत्यक्षत्वप्रसङ्गादभ्रान्तमिति विशेषणमध्यक्षस्य न स्यात् । धावतां दर्शनादवस्थितानामगानां प्राप्तेविसंवादात् भ्रान्तत्वसिद्धेस्तस्याप्रत्यक्षत्वे कुञ्चिकाविवरे मणिप्रभायां मणेर्दर्शनादपवरकाभ्यन्तरेऽपरिप्राप्तेः कथमिव तस्याभ्रान्तता युज्येत ? इति न प्रत्यक्षं तत्स्यात् । नापि
वह प्रत्यक्ष मणिप्रभा रूप अपने विषय में विसंवाद रूप नहीं है क्योंकि प्रदीप की प्रभा को भी प्रत्यक्ष देखा जाता है जैसे रजत रूप से ग्रहण करने से सोप का देखना प्रत्यक्ष नहीं है उसमें विसंवाद है तथैव उपर्युक्त कथन में विसंवाद नहीं है।
उस प्रत्यक्ष में जिसको किसी प्रकार का व्यभिचार नहीं है ऐसे उस पुरुष को “जो मैंने देखा था इसी को मैंने प्राप्त किया है" इस प्रकार से एकत्व के अध्यवसाय से विसंवाद का अभाव होने से मणि प्रभा में मणि का देखना प्रत्यक्ष है । तथा तिमिर रोग शीघ्र भ्रमण एवं नौका के संक्षोक्षादि से जिसको विम्रम प्राप्त हुआ है ऐसे पुरुष को भी दौड़ते हुए वृक्षादिकों का अवलोकन हो जाता है अर्थात् जिसको तिमिर रोग है या जल्दी-जल्दी चक्कर खाकर आया है या नौका में बैठा है उसे वृक्षादि स्थिर होते हुए भी दौड़ते हुए दिखते हैं उस ज्ञान को भी प्रत्यक्ष कहने का प्रसंग आ जावेगा । पुनः ‘अभ्रांत' यह विशेषण प्रत्यक्ष का नहीं हो सकेगा अर्थात सच्चे प्रत्यक्ष को अम्रांत नहीं कह सकेंगे क्योंकि असत्य प्रत्यक्ष भी अभ्रांत बन गया है, किन्तु ऐसा तो है नहीं प्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्षाभास में अभ्रांत एवं भ्रांत अवस्था देखी जाती है।
यदि आप ऐसा कहें कि दौड़ते हुये वृक्षों को देखने से पुनः स्थिर वृक्षों की प्राप्ति-उपलब्धि होने से उनमें विसंवाद देखा जाता है अतः वह प्रत्यक्ष तो भ्रांत रूप ही सिद्ध है और हम बौद्ध तो उन दौड़ते हुये वृक्षों को देखने रूप प्रत्यक्ष को अप्रत्यक्ष ही स्वीकार करते हैं तब तो कुंचिका के विवर में दिखने वाली मणिप्रभा में मणि के देखने से एवं कमरे के अन्दर मणि के न प्राप्त होने से वह प्रत्यक्ष भी अभ्रांत कैसे कहा जा सकेगा? इसलिये वह प्रत्यक्ष नहीं हो सकेगा अर्थात् मणि प्रभा का देखना प्रत्यक्षज्ञान में अन्तर्भूत नहीं होता है। एवं यह मणिदर्शन अनुमान ज्ञान न होने से अनुमान में भी
1 अनुमानप्रामाण्यसमर्थने दृष्टान्ततयोक्तस्य मणिप्रभादर्शनस्य प्रामाण्यं सुतरां सिद्धयत्येवान्यथा दृष्टान्तत्वाघटनात् संवादकत्वाच्च तथापि प्रत्यक्षानुमानयोः सौगतीययोभ्रान्तिर्भवतीत्यभिप्रायः । दि० प्र० । 2 मणिप्रभारूपे । दि० प्र० । 3 गर्भगहमध्ये । ब्या० प्र०। 4 प्रत्यक्षता । इति पा० । प्रमाणता । दि० प्र०।
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