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अष्टसहस्री
द०प० कारिका
विरम्य प्रवृत्त्यादेरसंभवादन्यथानुपपत्तिरस्त्येवेति चेन्न', तस्यापि वितनुकरणस्य तत्कृतेरसंभवात् कालादिवत् तादृशोपि' निमित्तभावे कर्मणामचेतनत्वेपि तन्निमित्तत्वमप्रतिषिद्धं, सर्वथा' दृष्टान्तव्यतिक्रमात् । यथैव हि कुलालादि: सतनुकरणः कुम्भादेः प्रयोजको' दृष्टान्तस्तनुकरणभुवनादीनामशरीरेन्द्रियेश्वरप्रयोजकत्वकल्पनया व्यतिक्रम्यते', तथा कर्मणामचेतनानामपि तन्निमित्तत्वकल्पनया' बुद्धिमानपि दृष्टान्तो व्यतिक्रम्यतां, विशेषाभावात् ।
स्यान्मतं- 'सशरीरस्यापि13 बुद्धीच्छाप्रयत्नवत एव कुलालादेः कारकप्रयोक्तृत्वं'4
जैन-ऐसा नहीं कहना । क्योंकि वह ईश्वर भी स्वयं तनुकरण-शरीर इन्द्रिय से रहित है पुन: उसके द्वारा तनुइन्द्रिय आदि का करना असम्भव है जैसे कालादि । अर्थात् ईश्वर, ५
श्वर, शरीर इन्द्रिय भुवन आदि का निमित्त कारण नहीं है क्योंकि स्वयं शरीर इन्द्रियों से रहित है मुक्तात्मा के समान । जैसे काल, शरीरेन्द्रिय से रहित है, वह शरीरादि की उत्पत्ति में कारण भी नही है उसी प्रकार से ईश्वर भी कारण नहीं है । उस प्रकार का ईश्वर भी निमित्त है ऐसा मानोगे, तब तो कर्म भो अचेतन हैं फिर भी वे कर्म उन तनुइन्द्रियादि में निमित्त हो जावें क्या बाधा है ? अर्थात् कोई भी विरोध नहीं है क्योंकि सर्वथा दृष्टांत का व्यतिकम है।
जिस प्रकार कुम्भकार आदि शरीर-इन्द्रिय से सहित होकर ही कुम्भादि के बनाने वाले हैं। यहां पर दृष्टान्त है और 'ये शरीरेन्द्रिय भुवन आदि' शरीरेन्द्रिय रहित ईश्वर के निमित्त से बनते हैं। इस प्रकार की कल्पना करने से तो दृष्टांत का उलङ्घन हो ही जाता है । उसी प्रकार से अचेतन भी कर्मों को उन शरीर आदिकों का निमित्त मानों ऐसी कल्पना से बुद्धिमान् भी दृष्टांत व्यतिक्रमित हो जावे कोई अन्तर नहीं है अर्थात् केवल शरीरेन्द्रिय सहित ही कुम्भकार घड़े को बनाता है ऐसा तो रहा नहीं। आपने शरीरादि रहित भी ईश्वर को मान ही लिया है तथैव अचेतन कर्मों को भी शरोरादि की उत्पत्ति में कारण मान लीजिये क्या बाधा है ?
योग-सशरीरी भी बुद्धि, इच्छा और प्रयत्न वाले ही कुम्भकार आदि कारक के प्रयोक्ता देखे जाते हैं क्योंकि घटादि कार्य को करने के लिये नहीं जानने वाले नहीं देखे जाते हैं। यदि जानने वाले हैं, किन्तु इच्छा का अभाव है तो कार्य नहीं हो सकता है और इच्छावान् के भी प्रयत्न के अभाव में कार्य अनुपलब्ध ही हैं । उसी प्रकार से शरीर इन्द्रिय रहित भी बुद्धि मान्, सृष्टि की इच्छा करने वाले, प्रयत्नवान् ऐसे सदाशिव लक्षण ईश्वर के समस्त कारकों का प्रयोक्तापना बन ही जाता है इस.
1 बुद्धिमत्कारणस्यापि । दि० प्र०। 2 उपभोगभोग्यभूवन तनुकरणादिकृतेः । ब्या० प्र०। 3 वितनुकरणस्य । दि० प्र०। 4 कर्माणि न तन्निमित्तकानीति प्रतिषेधाभावात् । दि० प्र०। 5 पुण्यादीनाम् । 6 तम्बादि । ब्या० प्र० । 7 वितनुकरणस्य प्रवृत्तिप्रकारेणाचेतनस्य स्वयं प्रवृत्तिप्रकारेण च । ब्या० प्र० । 8 घटकरणे कुम्भकारस्य । ब्या. प्र.। 9 निमित्तकर्ता। 10 निराक्रियते । ब्या० प्र.। 11 अपि शब्दोभिन्नक्रमे तेन कर्मणामीति । ब्या० प्र० । 12 भुवनाद्रि । ब्या० प्र० । 13 पुनः । ब्या० प्र०। 14 निमित्तकतत्वं । दि० प्र० ।
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