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अष्टसहस्री
[ द०प० कारिका १६
लोकधातव' इति वचनात् । न चाविद्यानुच्छेदे तृष्णा निवर्तते यतः सुगतः स्यात् । अथ ज्ञानस्तोकाद्विमोक्ष इष्यते, हेयोपादेयतत्त्वस्य साभ्युपायस्य वेदकः सुगत इति वचनात् । तर्हि बहतो मिथ्याज्ञानाद्बन्धः सिध्यतु, तन्निबन्धनतृष्णाया अपि संभवात् । कथमन्यथा मिथ्यावबोधतृष्णाभ्यामवश्यंभावी बन्ध इति प्रतिज्ञा न विरुध्यते ?
वृद्धबौद्धन मान्यं मोक्षतत्त्वमपि निराकुर्वन्ति जैनाचार्याः । ] एतेनैतदपि प्रत्याख्यातं यदुक्तं वृद्धबौद्धः "अविद्याप्रत्ययाः संस्कारप्रत्ययं विज्ञान ज्ञानप्रत्ययं नामरूपं नामरूपप्रत्ययं षडायतनं षडायतनप्रत्ययः स्पर्शः स्पर्शप्रत्यया वेदना वेदनाप्रत्यया तृष्णा तृष्णाप्रत्ययमुपादानमुपादानप्रत्ययो भवो भवप्रत्यया जातिर्जातिप्रत्ययं जरामरणम्' इति द्वादशाङ्ग प्रतीत्य समुत्पादस्य संभवात्, क्षणिकनिरात्मकाशुचिदुःखेषु
होना ही असंभव है क्योंकि वे विशेष रूप ज्ञेयपदार्थ अनन्त हैं। "अनंता लोकधातवः" लोक धातुयें अनन्त हैं ऐसा स्वयं बौद्धों का कहना है । अतएव अविद्या के नष्ट न होने पर तष्णा भी नष्ट नहीं हो सकती है कि जिससे वह सुगत-सर्वज्ञ हो सके अर्थात् नहीं हो सकता है।
बौद्ध-अल्पज्ञान से मोक्ष होती है क्योंकि उपाय (कारण) सहित हेयोपादेय तत्त्व को जानने वाला सुगत है ऐसा कहा है ।
जैन-तब तो बहुत से अवशिष्ट मिथ्याज्ञान से बंध सिद्ध हो जावे क्योंकि उस बंध के निमित्तक तृष्णा भी विद्यमान है, अन्यथा “मिथ्याज्ञान और तष्णा के द्वारा बध अवश्यम्भावी है" यह प्रतिज्ञा विरुद्ध क्यों नही हो जावेगी?
। वृद्ध बौद्धों की मान्यता का भी जैनाचार्य निराकरण करते हैं।] इसो कथन से उन वृद्ध बौद्धों का भी कथन खण्डित कर दिया गया है कि-अविद्या के निमित्त से संस्कार होते हैं, संस्कार के निमित्त से विज्ञान, विज्ञान के निमित्त से नामरूप, नामरूप के निमित्त से षट् आयतन, षडायतन के निमित्त से स्पर्श, स्पर्श से वेदना, वेदना से तृष्णा, तृष्णा के निमित्त से उपादान, उपादान के निमित्त से भव, भव के निमित्त से जन्म, जन्म से जरा और मरण होते हैं । इस प्रकार इन १२ कारणों का आश्रय लेकर संसार होता है। क्षणिक, निरात्मक, अशुचि दुःखों में उससे विपरीत लक्षण-नित्य, सात्मक, शुचि और सुख लक्षण अविद्या का उदय होने पर किसी भी ज्ञेय में उस निमित्तक संस्कार होते हैं जो कि पुण्य, पाप और आनेज्य से तीन प्रकार के हैं।
1 सिध्येत । इति पा० । दि० प्र०। 2 वक्ष्यमाणम् । कथमित्यादि ग्रन्थेन । दि० प्र० । 3 अविद्या एव प्रत्ययः कारणं येषां ते । दि० प्र० । 4 अत्र प्रत्ययशब्दो हेतुवाची प्रत्ययोधीन शपथज्ञान विश्वासहेतूष इत्यमरः। दि० प्र० । 5 विकल्परूपम् । ब्या० प्र० । 6 एतत् । ब्या० प्र० ।
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