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ज्ञान और अज्ञान से मोक्ष बन्ध के एकांत का खण्डन ] तृतीय भाग
[ ४६९
निराकृतं, योगिज्ञानात् प्राग्दोषानिवृत्तेस्तत्कारणमिथ्याज्ञानसंततेः संभवात् । एतेन वैशेषिकमतमपास्तम् 'इच्छाद्वेषाभ्यां' बन्ध' इति, केवल्यभावाविशेषात् ।
| बौद्धोऽविद्यात बंधं विद्यातः मोक्षं मन्यते जैनाचार्यार्थः तम् निराकुर्वति । ] | अविद्यातृष्णाभ्यां ' बन्धोवश्यंभावी ।
'दु:खे विपर्यास मतिस्तृष्णा वा बन्धकारणम् । जन्मिनो यस्य ते न स्तो न स जन्माधिगच्छति ॥',
इति तथागतमतमपि न सम्यक्, योगिज्ञानाभावप्रसङ्गात् । अयोगिनः प्रत्यक्षानुमानाभ्यामखिलतत्त्वज्ञानरूपाया विद्याया एवायोगात् तद्विशेषज्ञेयस्यानन्त्यात् ' स्वयं' 'मनन्ता
जैन - पुन: मिथ्याज्ञान से निश्चित ही बन्ध होता । ऐसा कैसे कहा ? नैयायिक - दोष सहित मिथ्याज्ञान से बन्ध होता है ।
जैन - इसका तो उपर्युक्त कथन से निराकरण हो जाता है । योगी के ज्ञान के पहले तो दोषों का अभाव हो नहीं सकता है क्योंकि उन दोषों के कारण रूप मिथ्याज्ञान की परम्परा विद्यमान है । इस कथन से वैशेषिक के मत का भी खण्डन कर दिया गया है ।
"इच्छाद्वेषाभ्यां बंध : " इच्छा और द्वेष से बंध होता है ऐसा मानने से तो उनके यहाँ भी केवली का अभाव ही हो जाता है क्योंकि योगिज्ञान के पहले इच्छा और द्वेष का अभाव नहीं होता है, उसके कारणभूत मिथ्याज्ञान संतति का सदैव सद्भाव है ।
[ बौद्ध अविद्या से बंध और विद्या से मोक्ष मानते हैं, आचार्य उनका भी निराकरण करते हैं । ] सौगत - अविद्या और तृष्णा के द्वारा बन्ध अवश्यम्भावी है । दुःख में विपर्यास बुद्धि - अविद्या अथवा तृष्णा ही बन्ध के कारण हैं, जिस प्राणी के ये दोनों नहीं हैं वह संसार को प्राप्त नहीं होता है ।
जैन - यह आपका कथन भी सम्यक् नहीं है, अन्यथा योगियों के ज्ञान का अभाव हो जायेगा । अयोगी - हम लोगों के तो प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा सम्पूर्ण तत्त्वज्ञानरूप विद्या का
1 दोषरूपाभ्याम् । द्वि० प्र० । 2 सौगत आह । अविद्यातृष्णाभ्यां बन्धोवश्यं भवति दुःखे सौख्यबुद्धिरविद्या साच बन्धनिमित्तं वा तृष्णा भोगाभिलाषो बन्धनिमित्तं स्यात् यस्य संसारिणो विद्यातृष्णे द्वे न भवतः स संसारं न प्राप्नोतिस्याद्वाद्याह इति सुगतमपि न सत्यं कस्माद्योगिज्ञानस्याभावप्रसंगात् छद्मस्थस्य निर्विकल्पक दर्शन लक्षण प्रत्यक्षेणानुमानेन च सर्वतत्त्वज्ञानरूपा विद्या एव न संभवति कुतोखिलतत्त्वज्ञान विशेषज्ञेयमनन्तं यतः पुनः कस्मादनन्तालोकधातवः स्वस्य सोगतस्येत्यागमात् । दि० प्र० । 3 अविद्यातृष्णे । व्या० प्र० । 5 सोगतेन । ब्या० प्र० ।
4 तत्त्वज्ञान । ब्या० प्र० ।
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