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________________ ६. श्रीपुर या अन्तरिक्ष के पार्श्वनाथ की स्तुति में कुल ३० पद्य हैं । इस स्तोत्र में दर्शन और काव्य का गंगा-यमुनी संगम है। डा. नेमिचन्द्र जी ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि -"इस स्तोत्र में सर्वज्ञ सिद्धि, अनेकान्तसिद्धि, भाषा भावात्मक वस्तु निरूपण, सप्तभंगीनय, सुनय, निक्षेप, जीवादि पदार्थ, मोक्षमार्ग, वेद की अपौरूषेयता का निराकरण आदि दार्शनिक विषयों का समावेश किया गया है । भगवान् पार्श्वनाथ को रागद्वेष का विजेता सिद्ध करते हुए, उनकी दिव्यवाणी का जयघोष किया है।" ७. अष्टसहस्री-जैन न्याय का यह सर्वोत्तम ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ के अध्ययन की महत्ता बतलाते हुए स्वयं श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं"श्रोतव्याष्टसहस्री श्रुतेः किमन्यैः सहस्रसंख्यानैः । विज्ञायेत ययैव, स्वसमय-परसमयसद्भावः ॥ हजारों ग्रन्थों के सुनने से क्या प्रयोजन है ? मात्र एक अष्टसहस्री ही सुनना चाहिये क्योंकि इस अष्टसहस्री के द्वारा ही स्व-सिद्धांत और पर-सिद्धान्त का सद्भाव (स्वरूप) जाना जाता है । ८. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक नाम का ग्रन्थ टीका ग्रन्थों में एक महत्वपूर्ण है। यह ग्रन्थ उमास्वामी के तत्त्वार्थ सूत्र पर भाष्य रूप से रचा गया है। पद्यात्मक शैली में है, साथ ही पद्यवार्तिकों पर उन्होंने स्वयं भाष्य अथवा गद्य में व्याख्यान लिखा है। ६. युक्त्यनुशासनालंकार यह भी एक टीकाग्रंथ है। श्री स्वामी समंतभद्र ने ६४ कारिकाओं में "युक्त्यनुशासन" नाम से यह एक स्तुति रचना की है। इसमें स्वामी ने श्री भगवान महावीर के शासन को "सर्वोदय" शासन सिद्ध किया है। __ वास्तव में जैसे इन आचार्य की अष्ट सहस्री ग्रंथ के प्रश्नोत्तर की शैली अनूठी है, अनुपम है और सभी के लिए पठनीय है, मननीय है। वैसे ही इनके सभी ग्रंथ न्याय और सिद्धांत का सूक्ष्मज्ञान कराने में सर्वथा सक्षम हैं। इन आचार्यदेव को मेरा शत्-शत् नमन । 卐वद्धतां जिनशासनम् ॥ २. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग २, पृ० ३६१ । १. अष्टसहस्री मूल, पृ० १५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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