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( ५२ ) इनकी रचनाओं को दो वर्गों में विभक्त किया गया है
१. स्वतन्त्र ग्रन्थ और, २. टीका ग्रन्थ । १. स्वतन्त्र ग्रन्थ
१. आप्त परीक्षा (स्वोपज्ञ वृत्ति सहित)। २. प्रमाण परीक्षा। ३. पत्र परीक्षा। ४. सत्य शासन परीक्षा । ५. श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र ।
६. विद्यानंद महोदय । २. टीका ग्रन्थ
१. अष्टसहस्री। २. श्लोकवार्तिक । ३. युक्त्यनुशासनालंकार ।
१. आप्तपरीक्षा ग्रन्थ में १२४ कारिकायें हैं और इन्हीं ग्रन्थकर्ता द्वारा रचित वृत्ति है। इस ग्रन्थ में अहंत को मोक्षमार्ग का नेता सिद्ध करते हुए मोक्ष, आत्मा, संवर, निर्जरा आदि के स्वरूप और भेदों का प्रतिपादन किया है। इसमें ईश्वर परीक्षा, कपिल परीक्षा, सुगत परीक्षा, ब्रह्माद्वैत परीक्षा करके अहंत के सर्वज्ञत्व की सिद्धि की है ।
२. प्रमाणपरीक्षा में प्रमाण का स्वरूप, प्रामाण्य की उत्पत्ति एवं ज्ञप्ति, प्रमाण की संख्या, विषय एवं उसके फल पर विचार किया गया है।
३. पत्रपरीक्षा नामक लघुकाय ग्रन्थ में विभिन्न दर्शनों की अपेक्षा "पत्र" के लक्षणों को उद्धृत कर जैन दृष्टिकोण से पत्र का लक्षण दिया गया है तथा प्रतिज्ञा और हेतु-इन दो अवयवों को ही अनुमान का अंग बताया है।
४. सत्य शासन परीक्षा की महत्ता के सम्बन्ध में पंडित महेन्द्र कुमार जी न्यायाचार्य ने लिखा है"उनकी यह सत्यशासन परीक्षा ऐसा एक तेजोमय रत्न है, जिससे जैन न्याय का आकाश दमदमा उठेगा। यद्यपि इसमें आये हए पदार्थ फुटकर रूप से उनके अष्टसहस्री आदि ग्रन्थों में खोजे जा सकते हैं, पर इतना सुन्दर और व्यवस्थित तथा अनेक नये प्रमेयों का सुरूचिपूर्ग संकलन, जिसे स्वयं विद्यानंद ने ही किया, अन्यत्र मिलना असम्भव है।"
५. विद्यानंद महोदय नाम का यह ग्रन्थ आचार्य विद्यानंद की सर्वप्रथम रचना है। इसके पश्चात् ही इन्होंने तत्त्वार्थ श्लोकवातिक और अष्टसहस्री आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है। यह ग्रन्य आज उपलब्ध नहीं है पर उसका नामोल्लेख श्लोकवातिक आदि ग्रन्थों में मिलता है।
१. अनेकांत, वर्ष ६, किरण ११ ।
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