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________________ श्री विद्यानन्द आचार्य आचार्य विद्यानन्द ऐसे महान ताकिक हए हैं कि जिन्होंने प्रमाण और दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना करके श्रुत परम्परा को महत्वशील बनाया है। इनकी रचनाओं के अवलोकन से यह अवगत होता है कि ये दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रान्त के निवासी थे। इसी प्रदेश को इनकी साधना और कार्य भूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है। किंवदन्तियों के आधार से यह माना जाता है कि इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हआ था। इन्होंने वैशेषिक न्याय; मीमांसा, वेदांत आदि दर्शनों का अध्ययन कर लिया था। इन आस्तिक दर्शनों के अतिरिक्त ये दिगनाग धर्मकीर्ति और प्रज्ञाकर आदि बौद्ध ग्रन्थों के तलस्पर्शी विद्वान् थे। ये कब हुए हैं ? इनकी गुरुपरम्परा क्या थी ? इनका जीवन-वृत्त क्या है ? इत्यादि बातें अनिर्णीत ही हैं । फिर भी विद्वानों ने इनका समय निश्चित करने के लिये पर्याप्त प्रयत्न किया है। शक सम्वत १३२० के एक अभिलेख' में कहे गये नन्दिसंघ के मुनियों की नामावलि में विद्यानंद का नाम आता है, जिससे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नन्दिसंघ के किसी आचार्य से दीक्षा ग्रहण की है और महान् आचार्य पद को सुशोभित किया है। श्री वादिराज ने ई० सन् १०५५) अपने "पार्श्वनाथ चरित" नामक काव्य में इनका स्मरण करते हुए लिखा है "ऋजुसूत्रं स्थुरद्रत्नं विद्यानंदस्य विस्मयः । शृण्वतामप्यलंकारं दीप्तिरंगेषु रंगति ॥" आश्चर्य है कि विद्यानंद के तत्त्वार्थ श्लोकवातिक ओर अष्टसहस्री जैसे दीप्तिमान अलंकारों को सुनने वालों के भी अंगों में दीप्ति आ जाती है, तो उन्हें धारण करने वालों की बात ही क्या है ? इस प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनकी कीर्ति ई० सन् की १०वीं शताब्दी में चारों तरफ फैल रही थी। पं० दरबारीलाल जी कोठिया ने विद्यानंद के जीवन और समय पर विशेष विचार किया है "विद्यानंद गंगनरेश शिवमार द्वितीय (ई० सन १०) और राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम (ई. सन् ८१६) के समकालीन हैं और इन्होंने अपनी कृतियां प्रायः इन्हीं के राज्य समय में बनाई हैं। विद्यानंद और तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक को शिवकार द्वितीय के और आप्तपरीक्षा, प्रमाण परीक्षा तथा युक्त्यनुशासनालंकृति ये तीन कृतियाँ राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम (ई०८१६-८३०) के राज्यकाल में बनी जान पड़ती हैं। अष्टसहस्री श्लोकवार्तिक के बाद की और आप्तपरीक्षा आदि के पूर्व की रचना है-करीब ई० ८१०-८१५ में रची गयी प्रतीत होती है। तथा पत्रपरीक्षा, श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र और सत्यशासन परीक्षा ये तीन रचनाएं ई० सन् ८३०-८४० में रची ज्ञात होती हैं। इससे भी आचार्य विद्यानंद का समय ई० सन् ७७५-८४० प्रमाणित होता है।" अतएव आचार्य विद्यानंद का समय ई० सन् की नवम शती है । इनके गृहस्थ जीवन का तथा दीक्षा गुरु का कोई विशेष परिचय और नाम उपलब्ध नहीं है। १. जैन शिलालेख संग्रह, भाग १, लेखांक १०५ । २. पार्श्वनाथ चरित, १/१८ । ३. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग २, पृ० ३५२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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