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________________ जीव के अस्तित्त्व की सिद्धि ] तृतीय भाग [ ४२३ 'बुद्धिशब्द प्रमाणत्वं बाह्यार्थे सति', नासति । सत्यानृतव्यवस्थैवं युज्यतेप्त्यनाप्तिषु ॥७॥ [ विज्ञानाद्वैतवादिनं प्रति बाह्यपदार्थसिद्धिं कुर्वंति जैनाचार्याः । ] बुद्धेः स्वप्रतिपत्त्यर्थत्वाच्छब्दस्य परप्रतिपादनार्थत्वात् । स्वपरप्रतिपत्त्यर्थ साधनं बुद्धिशब्दात्मकं स्वसं वित्त्यवः परप्रतिपादनायोगात् तस्याः पराप्रत्यक्षत्वात् । तस्य च सति बहिरर्थे प्रमाणत्वमर्थप्राप्तितः सिध्येत, असति' प्रमाणाभासत्वमर्थानाप्तितः । इति सत्यानृत बाह्य पदार्थ के होने पर, ज्ञान अरु शब्द प्रमाण सही । बाह्य पदार्थ नहि होवे यदि, ज्ञान अरु शब्द प्रमाण नहीं ।। अत: अर्थ की प्राप्ती से ही, वस्तु व्यवस्था घटती है। किन्तु अर्थ यदि प्राप्त न हो तब, मृषा व्यवस्था बनती है ।।८७।। कारिकार्थ-बाह्य पदार्थ के होने पर बुद्धि-ज्ञान और शब्द को प्रमाणता है एवं बाह्यार्थ के नहीं होने पर उनको प्रमाणरूपता नहीं है। इस प्रकार से अर्थ की प्राप्ति और अप्राप्ति में सत्य एवं असत्य की व्यवस्था की जाती है ।।७।। [विज्ञ नाद्वैतवादी के प्रति जैनाचार्य बाह्य पदार्थ की सिद्धि कर रहे हैं ।] बुद्धि स्वकीय ज्ञान कराने में प्रयोजनीभूत है एवं शब्द पर को प्रतिपादन करने में प्रयोजनीभूत है। "स्व एवं पर को ज्ञान कराने के लिये जो साधन-उपाय हैं वे बुद्धि एवं शब्दरूप हैं क्योंकि स्वसंवित्ति द्वारा ही पर को प्रतिपादन करना शक्य नहीं है।" वह स्वसंवित्ति पर को अप्रत्यक्ष है। बाह्य पदार्थ के होने पर ही वे बुद्धि और शब्द रूप साधन अर्थ की प्राप्ति से प्रमाणभूत सिद्ध होते हैं एवं बाह्य पदार्थ के नहीं होने पर अर्थ को अप्राप्ति से प्रमाणाभास रूप सिद्ध हो जाते हैं। 1 बुद्धि न तस्य स्वसंवेदनप्रयोजनत्वात् शब्दस्यायं घट इति परार्थप्रतिपादनप्रयोजनत्वात् इत्युक्ते स्वपरप्रतिपत्त्यर्थमेव बुद्धिशब्दात्मकं प्रमाणं कुतः संवित्त्या परप्रतिपादनायोगादिति भावार्थः । इति सत्यानतव्यवस्था बुद्धिशब्दयोर्युज्यते कुतः स्वपरपक्षसाधनदूषणात्मनोस्तथा प्रतीतेः । दि० प्र०। 2 ताद्धि । ब्या० प्र०। 3 बुद्धिश्च शब्दश्च बुद्धिशब्दो तयोः प्राणं तस्य भाव इति विग्रहः परमार्थतो बाह्यार्थे सति बुद्धिशब्दात्मकसाधनस्य प्रमाणत्वं घटतेऽसति न घटते एवं बाह्यार्थस्य प्राप्ती सत्यां साधनस्य सत्यव्यवस्था युज्यते=बाह्यार्थस्याप्राप्तौ सत्यां साधनस्य बाह्यार्थे सति प्रमाणत्वं स्वपरिज्ञाननिमित्तत्वात् = तथा बाह्यार्थे सति शब्दसाधनस्य प्रमाणत्वं घटते । कस्मात् परप्रतिपादनकारणत्वात् = एवं बुद्धिशब्दोभयात्मक साधनं प्रमाणं भवति । कस्मात् स्वपरोभयप्रतिपत्यर्थत्वात् । 4 सत्यत्वम् । दि० प्र०। 5 प्रमाणम् । ब्या० प्र०। 6 शब्दाभावे । प्रतिपाद्यानाम् । ब्या० प्र०। 7 असति बहिरर्थे साधनस्येति संबन्धनीयम् । ब्या० प्र० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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