SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुशिष्य परम्परा यद्यपि समंतभद्र की गुरु-शिष्य परम्परा के विषय में बहुत कुछ अनिर्णीत ही है, फिर भी इन्हें किन्हीं प्रशस्तियों में उमास्वामी के शिष्य बलाकपिच्छ के पट्टाचार्य माना है। श्रवणबेलगोला के एक अभिलेख में भी आया है श्री गृद्धपिच्छमुनिपस्य बलाकपिच्छः । शिष्यो जनिष्ट- । एवं महाचार्य परंपरायां,......"समंतभद्रोऽजनि वादिसिंहः ।। अर्थात् भद्र बाहुश्रुतकेवली के शिष्य चन्द्रगुप्त, चन्द्रगुप्त के वंशज पद्मनन्दि अपरनाम श्री कुन्दकुन्दाचार्य, उनके वंशज गृद्धपिच्छाचार्य, उनके शिष्य बलाकपिच्छ और उनके पट्टाचार्य श्री समंतभद्र हुए हैं। "श्रुतमुनि-पट्टावलिः" में भी कहा है तस्मादभूद्योगिकुलप्रदीपो वलाकपिच्छः स तपोमहद्धिः । यदंगसंस्पर्शनमात्रतोऽपि वायुद्विषादीनमृतीचकार ॥१३॥ समंतभद्रोऽजनि भद्रमूर्तिस्ततः प्रणेता जिनशासनस्य । यदीयवाग्वज्रकठोरपातश्चूणीचकार प्रतिवादिशैलान् ॥१४॥ चन्नदायपट्टण ताल्लु के के अभिलेख नं० १४६ में इन्हें श्रुतकेवलि के ऋद्धि मानी है और वर्धमान जिनके शासन की सहस्रगुणी वृद्धि करने वाला कहा है । समय निर्धारण आचार्य समंतभद्र के समय के सम्बन्ध में विद्वानों ने पर्याप्त ऊहापोह किया है। मि. लेविस राईस का अनुमान है कि ये आचार्य ई० की प्रथम या द्वितीय शताब्दी में हुए हैं। डा० ज्योतिप्रसाद जी आदि ने भी सन् १२० में राजकुमार के रूप में सन् १३८ में, मुनिपद में सन् १८५ के लगभग स्वर्गस्थ हुए ऐसे ईस्वी सन् की द्वितीयशती को ही स्वीकार किया है। अतएव संक्षेप से समंतभद्र का समय ईस्वी सन द्वितीय शताब्दी ही प्रतीत होता है। समन्तभद्र की रचनायें १. वृहत्स्वयंभूस्तोत्र, २. स्तुतिविद्या-जिनशातक, ३. देवागमस्तोत्र-आप्तमीमांसा, ४. युक्त्यनुशासन, ५. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ६. जीवसिद्धि, ७. तत्त्वानुशासन, ८. प्राकृतव्याकरण, ६. प्रमाण पदार्थ, १०. कर्मप्राभूतटीका, ११. गंधहस्ति महाभाष्य । १. स्वयंभुवा "भूतहितेन भूतले" आदि रूप से स्वयंभूस्तोत्र धर्मध्यान दीपक आदि पुस्तकों में प्रकाशित हो चुका है। २. "स्तुतिविद्या" इसमें भी चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति है। १. जैन शिलालेख संग्रह. प्रथम भाग, लेख सं० ४०, पद्य ८-६; पु० २५ । २. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग ४, पु.४११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy