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________________ अनेकांत की सिद्धि ] तृतीय भाग [ ३३३ सप्तभंगी प्रक्रिया १. द्रव्य और पर्याय का पृथक्-पृथक् विवेचन करना अशक्य होने से दोनों में कथंचित् एकत्व है। २. असाधारण स्वरूप, स्वलक्षण के भेद से कथंचित् दोनों में नानापना सिद्ध है। ३. क्रम से दोनों नयों की अर्पणा करने से दोनों कथंचित् उभयात्मक हैं। ४. युगपत् दोनों नयों की अर्पणा करने से कहना अशक्य है अतः कथंचित् दोनों अवक्तव्य हैं। ५. विरुद्ध-धर्मध्यास और एक साथ दोनों नयों की अर्पणा करने से कथंचित् नानात्व अवक्तव्य हैं। ६. अशक्य विवेचन और एक साथ दोनों नयों की अर्पणा करने से कथंचित् एकत्व भवक्तव्य हैं। ७. क्रम तथा अक्रम से अर्पित दोनों नयों से कथंचित् द्रव्य पर्याय नानैकत्वावक्तव्य इस प्रकार से द्रव्य पर्याय में प्रमाण और नय से अविरुद्ध सप्तभंगी सुघटित है। सार का सार-यहाँ जैनाचार्यों ने द्रव्य और पर्यायों को कथंचित् एकरूप सिद्ध किया है एवं भिन्न-भिन्न भी कह दिया है क्योंकि अपेक्षाकृत सभी व्यवस्था सुघटित है, निरपेक्षता से नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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