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________________ ३३२ ] अष्टसहस्री [ च० ५० कारिका ७१-७२ कथंचित् अन्यत्व अनन्यत्व की सिद्धि का सारांश अद्वैतवादी का कहना है कि द्रव्य एक है, वास्तविक है। पर्यायें अनेक हैं, वे अवास्तविक हैं । द्रव्य उन पर्यायों से भिन्न हैं। सौगत का कहना है कि वर्णादि रूप अनेक पर्यायें ही वास्तविक हैं, किन्तु द्रव्य नाम की कोई चीज ही नहीं है। इस पर जैनाचार्यों का कहना है कि द्रव्य और पर्यायों में कथंचित् एकत्व है क्योंकि उन दोनों को पृथक्-पृथक् करना अशक्य है । तथैव द्रव्य और पर्याय में कथंचित् भिन्नपना भी है, क्योंकि दोनों में परिणाम विशेष पाया जाता है तथा शक्तिमान शक्ति के निमित्त से अपने अपने लक्षणों के भेद से एवं प्रयोजन आदि के भेद से भी दोनों में भेद पाया जाता है। अतएव द्रव्य और पर्याय एक वस्तु हैं क्योंकि प्रतिभास भेद के होने पर भी ये दोनों अभिन्न हैं। जैसे चित्र ज्ञान एक हैं । पर्याय निरपेक्ष केवल द्रव्य अथवा द्रव्य निरपेक्ष केवल पर्यायें अर्थ क्रियाकारी नहीं हैं क्योंकि केवल इन एक द्रव्य का या पर्याय मात्र में युगपत् या क्रम से अर्थ क्रिया सम्भव नहीं है । कथंचित् लक्षण आदि भेद से दोनों भिन्न-भिन्न हैं । द्रव्य का "सत्द्रव्यलक्षणम्" अथवा "गुणपर्ययवद्रव्यम्" ऐसा लक्षण पाया जाता है। सत् का लक्षण "उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्” है। पर्याय का लक्षण है "तदुभावः परिणामः" उस उस प्रतिविशिष्ट रूप से होना ही परिणाम है। सहभावी गुण होते हैं और क्रमभावी पर्याय होती हैं। यह तद्भाव लक्षण इन सम्पूर्ण गुणपर्याय रूप परिणामों में व्याप्त है। द्रव्य तो अनादि अनंत एक स्वभाव रूप है और पर्यायें सादि सांत अनेक स्वभाव रूप परिणाम वाली हैं। द्रव्य तो शक्तिमान् है और पर्यायें शक्तिभाव रूप हैं । द्रव्य एक हैं, पर्याय अनेक हैं। ___ अतएव संज्ञा, संख्या विशेष से परिणाम विशेष से स्वलक्षण विशेष से इन पर्यायों में भेद है। दोनों का प्रयोजनादि कार्य भी अलग-अलग है यथा द्रव्य एकत्व-अन्वय ज्ञानादि कार्य रूप हैं । पर्यायें अनेकत्व, व्यावृत्ति प्रत्यय कार्य रूप हैं। द्रव्य त्रिकाल गोचर हैं, पर्यायें वर्तमान काल वाली हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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