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अनेकांत की सिद्धि ।
तृतीय भाग
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३२७
एतेनाविद्यमाने 'विपक्षे सतोऽसंभवत्सपक्षस्यासाधारणत्वमुपदशितं प्रत्येयम् । विद्यमाने च
सपक्षेःसतोऽसंभवद्विपक्षस्य पक्षव्यापिनोऽसाधारणस्य लक्षणत्वमविरुद्धं शब्दस्यानित्यत्वे श्रावणत्ववत् । न हि तद् घटादावनित्ये सपक्षे विद्यमानेप्यस्ति । नाप्यस्य विपक्षो नित्यैकान्तः संभवति, शब्दत्वस्यापि सदृशपरिणामलक्षणस्य कथंचिदनित्यत्वात्, शब्दाभावस्य च शब्दान्तरस्वभावस्येत रेतराभावप्रध्वंसाभावरूपस्यानित्यत्वात् पक्षादन्यत्वानुपपत्तेः । अशब्दात्मनोऽश्रावणत्वात् साधीय एव श्रावणत्वं शब्दस्य लक्षणं, शब्दात्मकत्वाभावेऽनुपपद्यमानत्वात् । इत्यन्यथानुपपद्यमानरूपं पक्षव्यापि लक्षणमनवद्यत्वात् ।
सपक्ष और विपक्ष विद्यमान हैं अथवा अविद्यमान हैं। उन दोनों में रहने वाला असत् हेतु जो कि पक्ष व्यापी है उसे असाधारण कहा गया है। इस कथन से जो पक्ष में अव्यापक हेतु को वस्तु असाधारण लक्षण कहते हैं। उनका खण्डन कर दिया गया है। क्योंकि वह पक्ष के एक देश में व्यापक होने से असाधारण का एक देश रूप है; अतः वह लक्षण नहीं बन सकता है । जैसे कि उष्णत्व अग्नि का असाधारण होते हुए भी लक्षण नहीं हो सकता है क्योंकि लक्ष्य के एक देश में उसकी वृत्ति है।
वह उष्णत्व सम्पूर्ण अग्नि विशेषों में नहीं है। प्रकट नहीं हुआ है। उष्ण स्पर्श जिनमें ऐसे प्रदीप की प्रभा आदिकों में उष्णत्व का अभाव है। एवं अनुभूत भी उष्णत्व को लक्षण कहना युक्त नहीं है क्योंकि अप्रसिद्ध है।
यदि पुनः उष्ण स्पर्श की योग्यता ही अग्नि का लक्षण किया जावे तब तो पक्षी व्यापी नाम का कोई दोष नहीं आ सकता है क्योंकि वही पक्ष व्यापी असाधारण लक्षण बन जायेगा।
इसी कथन से विपक्ष से अविद्यमान के होने पर असत् रूप हेतु में सपक्ष असंभव है अतः वह असाधारण है ऐसा कहा गया समझना चाहिये और सपक्ष के विद्यमान रहने पर असत् हेतु में विपक्ष असंभव है अतः वह भी पक्ष में व्यापी होने से असाधारण लक्षण अविरुद्ध है। जैसे शब्द का अनित्यत्व साध्य करने में श्रावणत्व हेतु देना । इस हेतु में सपक्ष, विपक्ष का अभाव होने पर भी पक्ष में व्यापकत्व सिद्ध है। अतः यह लक्षण बन जाता है । वह श्रावणत्व हेतु घटादि अनित्य सपक्ष के विद्यमान रहने पर भी उनमें नहीं है और नित्यकांतरूप विपक्ष भी इसका संभव नहीं है । क्योंकि सदृश परिणाम-लक्षण सामान्य शब्दत्व भी कथंचित्-पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है ।
यदि आप कहें कि शब्द का अभाव विपक्ष हो सकता है तो यह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि वह शब्दाभाव या तो शब्दांतर स्वभाव होगा या इतरेतराभाव रूप होगा, या प्रध्वसांभाव रूप होगा, कैसे भी क्यों न हो वह अनित्य रूप ही होगा पुनः अनित्य पक्ष से भिन्न नहीं हो सकता है।
यदि शब्दाभाव को सर्वथा तुच्छाभाव रूप अशब्दात्मक कहोगे तब तो वह अश्रावणत्व हो
1 लक्षणस्य । ब्या० प्र०। 2 लक्षणस्य । दि० प्र०। 3 ततश्च । ब्या० प्र० ।
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