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________________ सम्यग्दर्शन की विशुद्धि के लिये और अपने से अध्ययन करने वालों को न्याय ग्रंथों का रसास्वादन कराने के लिये ही इसका अनुवाद किया है । अतएव इसमें किसी प्रकार की त्रुटियों के लिये मैं क्षमा प्रार्थी हूं। अक्षरमात्रपदस्वरहीन, व्यंजनसंधिविजितरेफं। साधुभिरत्र मम क्षमितव्यं, को न विमुहयति शास्त्रसमुद्रे ॥ मंगल कामना-इस ग्रंथ का स्वाध्याय करके तथा शिष्यों को पढ़ा करके, इसके अर्थ, भावार्थ, विशेषार्थ, सारांश आदि का चितन, मनन करके भव्य महापुरुष और भव्य महिलाएं सच्चे आप्त के प्रति अपनी श्रद्धा को दृढ़ करके अपने मोक्षमार्ग को प्रशस्त करें, यही मेरी मंगल कामना है। 卐 आचार्य चतुष्टय श्री उमास्वामी आचार्य गणिनी आयिका ज्ञानमती तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के रचयिता आचार्यश्री उमास्वामी हैं। इनको उमास्वाति भी कहते हैं। इनका अपरनाम गृद्धपिच्छाचार्य है । धवलाकार ने इनका नामोल्लेख करते हुए कहा है कि "तह गिद्धपिछाइरियप्पयासिदतच्चत्थसुत्तेवि" । उसी प्रकार से गृद्धपिच्छाचार्य के द्वारा प्रकाशित तत्त्वार्थसूत्र में भी कहा है। इनके इस नाम का समर्थन श्री विद्यानन्द आचार्य ने भी किया है । यथा-- __ "एतेन गृद्धपिच्छाचार्यपर्यंतमुनिसूत्रेण व्यभिचारता निरस्ता"। इस कथन से गद्धपिच्छाचार्य पर्यन्त मुनियों के सूत्रों से व्यभिचार दोष का निराकरण हो जाता है । तत्त्वार्थ सूत्र के किसी टीकाकार ने भी निम्न पद्य में तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता का नाम गृद्धपिच्छाचार्य दिया है तत्त्वार्थसूत्रकरिं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । वंदे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥ "गृद्धपिच्छ" इस नाम से उपलक्षित, तस्वार्थसूत्र के कर्तागण के नाथ उमास्वामी मुनीश्वर की मैं वन्दना करता हूँ। १. षट्खंडागम, धवलाटीका, जीवस्थान, काल अनुयोग द्वार पृ० ३१६ । २. तत्त्वावलोक वार्तिक पु०६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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